
तेहरान में शनिवार को ईरान की सुप्रीम कोर्ट में हुई गोलीबारी में दो जजों की मौत हो गई। सुप्रीम कोर्ट के प्रवक्ता असगर जहांगीर के अनुसार, हमलावर ने जजों के कमरों में घुसकर उन्हें निशाना बनाया। दोनों जज का नाम अली रजिनी और मोघीसेह है। दोनों नेशनल सिक्योरिटी, आतंकवाद और जासूसी जैसे संवेदनशील मामलों की सुनवाई करते थे। आरोपी ने उनको गोली मारने के बाद खुद को भी गोली मार ली। इस घटना में एक अन्य जज और एक बॉडीगार्ड भी घायल हुए हैं। हमला सुबह 10:45 बजे हुआ और तीन जजों को निशाना बनाया गया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अधिकतर मामलों में फांसी की सजा देने के चलते मारे गए जजों को ‘हैंगमैन’ कहा जाता था।
1988 में भी रजिनी की हत्या की कोशिश
रिपोर्ट्स के अनुसार, हमलावर ईरान के जस्टिस डिपार्टमेंट का ही कर्मचारी था। ईरान इंटरनेशनल के मुताबिक, तेहरान की कोर्ट हाउस से कई लोगों को गिरफ्तार किया गया है और अधिकारियों ने हमले के पीछे के मकसद की जांच शुरू कर दी है। रजिनी पर 1988 में भी एक हत्या की कोशिश की गई थी। उस वक़्त उनके बाइक में मैग्नेटिक बम लगाया गया था। वहीं, अमेरिकी ट्रेजरी डिपार्टमेंट के अनुसार, दूसरे जज मोघिसेह पर अमेरिका ने 2019 में बैन लगा दिया था।
दुनियाभर में सबसे ज्यादा फांसी देने वाला देश है ईरान
ईरान दुनिया में सबसे अधिक फांसी की सजा देने वाले देशों में से एक है। 2024 में अब तक 901 लोगों को मौत की सजा दी गई है, जिनमें 31 महिलाएं भी शामिल हैं। पिछले साल दिसंबर में केवल एक हफ्ते के भीतर 40 लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई थी। यूएन ह्यूमन राइट्स के अनुसार, पिछले साल फांसी की सजा पाने वालों में अधिकांश लोग नशीली दवाओं से संबंधित अपराधों और 2022 में महसा अमीनी की मौत के बाद देशभर में हुए विरोध प्रदर्शनों से जुड़े थे।
आपको बता दे कि ईरान में 9 साल की बच्चियों की भी फांसी की सजा दी जाती है। लड़कों के लिए ये उम्र 15 है। साल 2005 से 2015 के बीच लगभग 73 बच्चों को मौत की सजा दी जा चुकी है।