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मध्यप्रदेश के वोटर्स की अंगुली पर लगेगी तीन करोड़ रुपए की स्याही

कर्नाटक से भोपाल पहुंची स्याही की 1.52 लाख शीशियां

नरेश भगोरिया/भोपाल। मतदान के दौरान हर मतदाता की अंगुली पर नहीं मिटने वाली स्याही का स्टॉक भोपाल पहुंच गया है। इस स्याही को एकमात्र मैसूर पेंट एंड वार्निश लिमिटेड (एमपीवीएल) कंपनी बनाती है। कंपनी ने यह स्याही हर राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय के बताए अनुसार सामग्री केंद्र को भेज दी है। चुनाव के लिए कंपनी ने मप्र के वोटर्स के लिए 1.52 लाख शीशियों का स्टॉक भेजा है। यह स्याही लगभग 3.14 करोड़ रु. से ज्यादा की पड़ेगी। मध्यप्रदेश में 5 करोड़ 63 लाख मतदाता हैं। प्रदेश की 29 सीटों पर चार चरणों में वोट डाले जाएंगे। चुनाव कराने के लिए जैसे-जैसे मतदान दल रवाना होंगे उन्हें अपने सेंटर से सामग्री के साथ अमिट स्याही की शीशियां (वाइल) दी जाएंगी। दरअसल एमपीवीएल ने लगभग 55 करोड़ रुपए की 26.55 लाख वाइल देश भर में भेजी हैं। इस मान से मप्र द्वारा स्याही के बदले दी जाने वाली राशि का आकलन किया गया है।रुपए की 26.55 लाख वाइल देश भर में भेजी हैं। इस मान से मप्र द्वारा स्याही के बदले दी जाने वाली राशि का आकलन किया गया है।

कहीं अंगुली डुबा दी जाती है तो कहीं पेन से निशान :

एमपीवीएल न केवल हिंदुस्तान, बल्कि कई देशों को यह स्याही सप्लाई करता है। दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, तुर्किए, नेपाल, मलेशिया, कंबोडिया आदि में यह स्याही सप्लाई की जाती है। अफगानिस्तान में जब मतदान होते थे तो पेन से यह स्याही लगाई जाती थी। तुर्की में नोजल से और मालदीव और कंबोडिया में पूरी अंगुली को ही स्याही में डुबोए जाने का प्रावधान रहा है।

स्याही का फॉर्मूला सार्वजनिक नहीं

अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स में स्याही को लेकर कई कहानियां हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के पहले चुनाव में कुछ मतदाताओं द्वारा दोबारा वोट डालने जैसी शिकायतें मिलीं तो नेशनल फिजिकल लैब (एनपीएल) को ऐसी स्याही बनाने को कहा गया, जो मिटे नहीं।

स्याही की कुछ खास बातें :

  1. 1962 में चुनाव हुए तो पहली बार अमिट स्याही का उपयोग हुआ।
  2. यह स्याही कम से कम 15 दिन अंगुली पर से नहीं मिटती।
  3. स्याही सिल्वर नाइट्रेट से बनती है।
  4. अंगुली पर लगाते वक्त इसका रंग बैगनी होता है धूप का संपर्क होते ही रंग काला हो जाता है।

अमिट स्याही का स्टॉक मप्र पहुंच गया है। हर राज्य को इसका अलग पेमेंट करना पड़ता है। स्याही को सुरक्षित रखने के लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं करनी पड़ती। – राजेश कोल, एसीईओ, मप्र

 

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