
देश-दुनिया में होली का त्यौहार काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है और कुछ खास जगहों पर तो यह विश्वप्रसिद्ध है। जैसे कि कृष्ण नगरी कही जाने वाली मथुरा, वृंदावन, बरसाना में यह त्यौहार काफी पहले से शुरू हो जाता है। वहीं धर्म की नगरी काशी में होली का उत्सव एकादशी से शुरू हो जाता है। यहां काशीवासी सबसे पहले अपने ईष्ट भोले बाबा के साथ महाश्मशान घाट पर रंगों के साथ-साथ चिता की राख से होली खेलते हैं।

यह होली बहुत अलग है
काशी के महाश्मशान घाट पर रंगभरी एकादशी के दिन खेली गई होली बाकी होली से बहुत ही अलग होती है। बता दें कि यहां रंगों से नहीं बल्कि चिता की राख से होली खेली जाती है। मोक्षदायिनी काशी नगरी के महाशमशान हरिश्चंद्र घाट पर 24 घंटे चिताएं जलती रहती हैं। कहा जाता है कि यहां कभी चिता की आग ठंडी नहीं होती है। पूरे साल यहां मातम पसरा रहता है। लेकिन साल में एकमात्र होली का दिन ऐसा होता है जब यहां खुशियां बिखरती हैं।
चिता की भस्म से होली
इस साल भी महाश्मशान घाट पर रंगभरी एकादशी के दिन चिता की राख से होली खेली गई। बता दें कि डमरू, घंटे, घड़ियाल और मृदंग, साउंड सिस्टम से निकलती धुनों के बीच चारों ओर जलती चिताओं की भस्म से यहां होली खेली गई। कहा जाता है कि रंग-गुलाल के अलावा उड़ती हुई चिता की भस्म से इस होली को सालों से मनाते आ रहे हैं।
350 साल पुरानी है परंपरा
रंगभरी एकादशी के दिन महाशमशान पर चिता की राख से होली खेलने की यह परंपरा करीब 350 साल पुरानी है। बताया जाता है कि जब भगवान विश्वनाथ विवाह के बाद मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे थे। तब उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी। लेकिन वह श्मशान पर बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरियों के साथ होली नहीं खेल पाए थे। इसलिए उन्होंने रंगभरी एकादशी के दिन उनके साथ चिता की भस्म से होली खेली थी।
आरती से होती है होली की शुरुआत
रंगभरी एकादशी की शुरूआत हरिश्चंद्र घाट पर महाश्मशान नाथ की आरती से होती है। इसके पहले शोभायात्रा भी निकाली जाती है। जिसका आयोजन यहां के डोम राजा का परिवार करता है।