
मुंबई। भारतीय रुपया सोमवार को डॉलर के मुकाबले 86.61 रुपए के नए निचले स्तर पर पहुंच गया। ऐतिहासिक रूप से यह अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है। पिछले कुछ समय से रुपए पर दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। इस गिरावट की मुख्य वजह डॉलर इंडेक्स का 109.98 तक पहुंचना है, जो पिछले दो सालों का उच्चतम स्तर है।
शुक्रवार को जारी अमेरिकी नॉन-फार्म पेरोल डेटा ने इस गिरावट को और बढ़ावा दिया। यह डेटा उम्मीद से कहीं बेहतर रहा, जिससे निवेशकों को अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मजबूती का संकेत मिला। इसके चलते, फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद खत्म हो गई है। माना जा रहा है कि अब कटौती की उम्मीद 2025 के मध्य से खिसककर सितंबर 2025 तक खिसक गई है।
रूसी तेल कंपनियों पर लगे प्रतिबंध का दिखा असर
बाइडेन प्रशासन द्वारा रूस पर नए सिरे से लगाए गए प्रतिबंधों का असर रूसी तेल उत्पादकों और शिपिंग कंपनियों पर दिख रहा है। इसकी वजह से कच्चा तेल 81 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर निकल गया है। कच्चे तेल की बढ़ी कीमतों ने भारत के आयात बिल को और बढ़ा दिया है,जिससे रुपए पर दबाव बढ़ गया है। रुपए के लिए ट्रेडिंग रेंज 87.00 के आसपास सपोर्ट और 86.25 के आसपास रजिस्टेंस के बीच दिख रहा है। बाजार की नजरें भू-राजनीतिक घटनाक्रमों और कमोडिटी रुझानों पर बनी हुई है।
इम्पोटर्स ने दी डॉलर को वरीयता
कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी ने आयात को महंगा कर दिया है, जिससे भारतीय मुद्रा पर दबाव बढ़ गया है। इस बीच, आयातकों ने डॉलर की बढ़ती मांग को देखते हुए भारी मात्रा में डॉलर की खरीद की है। इसके चलते डॉलर की मांग और अधिक बढ़ गई है, जिससे रुपया और कमजोर हो गया है। इसके अलावा, विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) द्वारा भारतीय बाजार से पूंजी निकासी भी रुपए की गिरावट के प्रमुख कारणों में से एक है। वैश्विक अनिश्चितताओं और निवेशकों की सतर्कता के चलते एफआईआई लगातार भारतीय बाजार से धन निकाल रहे हैं, जिससे रुपए पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
अगले कुछ समय तक जारी रहेगी रुपए में गिरावट
विशेषज्ञों का मानना है कि रुपए की कमजोरी अगले कुछ समय तक जारी रह सकती है। बढ़ती कच्चे तेल की कीमतें, डॉलर की मजबूती, और वैश्विक बाजारों में जोखिम से बचाव की प्रवृत्ति भारतीय मुद्रा के लिए चुनौतियां पैदा कर रही हैं। डॉलर की मजबूती और घरेलू बाजारों की कमजोर स्थिति को देखते हुए रुपया अभी कुछ समय तक कमजोर बना रहेगा। माना जा रहा है कि यूएसडीआईएनआर स्पॉट प्राइस 86.25 से 86.80 के बीच रह सकता है। रुपए की गिरावट का सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। आयात महंगा होने से महंगाई दर में बढ़ोतरी हो सकती है। खासतौर पर तेल, गैस, और अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ने की संभावना है, जिससे अगले दिनों में आम जनता की जेब पर दबाव बढ़ेगा।
कच्चे तेल के बढ़ी कीमत बनी वजह
दूसरी ओर, निर्यातकों को इसका फायदा मिल सकता है, क्योंकि कमजोर रुपए के चलते उनके उत्पाद वैश्विक बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बनेंगे। हालांकि, यदि यह गिरावट लंबे समय तक बनी रहती है, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती समस्या बन सकती है। कुल मिलाकर, रुपए की गिरावट के पीछे वैश्विक और घरेलू दोनों कारण हैं। डॉलर की मजबूती, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि और एफआईआई की पूंजी निकासी ने इस स्थिति को जन्म दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपए को थामने के प्रयास शुरू किए हैं। लेकिन इनका अब तक रुपए की सेहत पर कोई असर पड़ता नहीं दिखाई दिया है। यह गिरावट कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के कारण आई है।
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