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विजय शाह पर FIR को हाईकोर्ट ने ‘खानापूर्ति’ करार दिया, कहा- अभियुक्त की करतूतों को छुपाया जा रहा; SC से भी मिली फटकार

जबलपुर। मध्य प्रदेश के जनजातीय कार्य मंत्री विजय शाह द्वारा भारतीय सेना की वीरांगना कर्नल सोफिया कुरैशी पर दिए गए विवादित बयान का मामला अब गंभीर कानूनी मोड़ ले चुका है। जबलपुर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट, दोनों ही न्यायालयों से मंत्री को फटकार का सामना करना पड़ा है। जहां हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर सख्त टिप्पणी की, वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी मंत्री की अर्जी पर तत्काल राहत देने से इनकार कर दिया।

क्या है पूरा मामला

यह विवाद 12 मई को मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के महू में आयोजित एक कार्यक्रम से शुरू हुआ। इस कार्यक्रम में मंत्री विजय शाह ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की ब्रीफिंग देने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी का नाम लिए बिना टिप्पणी की, जो कि जल्द ही सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। उन्होंने कहा, “जिन लोगों ने हमारी बहनों का सिंदूर मिटा दिया था, हमने उनकी बहन को भेजकर उनकी ऐसी-तैसी करवाई।”

इस बयान को लेकर व्यापक आलोचना हुई। कर्नल सोफिया कुरैशी के परिवार, सेना के अधिकारियों, विपक्षी दलों और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी। लोगों ने इसे न केवल एक महिला सैन्य अधिकारी का अपमान बताया, बल्कि इसे भारतीय सेना की गरिमा और सामाजिक सौहार्द पर चोट के रूप में देखा।

हाईकोर्ट ने स्वतः लिया संज्ञान, कहा- गटर की भाषा

मामले को गंभीरता से लेते हुए जबलपुर हाईकोर्ट की खंडपीठ  न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति अनुराधा शुक्ला ने स्वतः संज्ञान लिया और मंत्री के बयान को गटर की भाषा बताया। कोर्ट ने कहा, “यह बयान न सिर्फ एक महिला अधिकारी का अपमान है, बल्कि यह राष्ट्रीय एकता, सामाजिक सौहार्द और भारतीय सेना की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला है।”

इसके बाद कोर्ट ने 14 मई को राज्य के डीजीपी को आदेश दिया कि वह विजय शाह के खिलाफ भारत न्याय संहिता (BNS) की धारा 152, 196(1)(b) और 197(1)(c) के तहत चार घंटे के भीतर FIR दर्ज करें। उसी रात महू तहसील के मानपुर थाने में मंत्री विजय शाह के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।

FIR की ड्राफ्टिंग पर हाईकोर्ट ने उठाए सवाल

जब 15 मई को FIR की कॉपी कोर्ट के सामने पेश की गई, तो खंडपीठ ने उसकी भाषा और प्रस्तुति पर कड़ी आपत्ति जताई। कोर्ट ने कहा, “FIR को इस तरह ड्राफ्ट किया गया है, जैसे अभियुक्त की करतूतों को छुपाया जा रहा हो। यह इतनी कमजोर है कि किसी भी चुनौती में यह खारिज की जा सकती है।”

न्यायमूर्ति श्रीधरन ने आगे कहा, “इस स्तर की लापरवाही न केवल कानूनी प्रक्रिया का मजाक है, बल्कि यह सेना और एक महिला अधिकारी के सम्मान के साथ खिलवाड़ है।”

इसके साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिए कि FIR को संशोधित किया जाए, उसमें मंत्री के कथनों के पूरे तथ्य और संदर्भ स्पष्ट रूप से जोड़े जाएं, और यह भी सुनिश्चित किया जाए कि जांच निष्पक्ष और बिना किसी राजनीतिक दबाव के हो। हाईकोर्ट मामले की मॉनिटरिंग खुद करेगा, ताकि निष्पक्ष जांच हो सके। मामले की अगली सुनवाई ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल राहत देने से किया इनकार

FIR दर्ज होने के बाद मंत्री विजय शाह ने जबलपुर हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने अपनी याचिका में यह तर्क दिया कि उनके बयान को गलत समझा गया और उन्होंने सार्वजनिक रूप से माफी भी मांग ली है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को नकारते हुए तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने कहा, “आप एक मंत्री हैं, आपको सोच-समझकर बोलना चाहिए। पहले हाईकोर्ट में अपील करें।”

सुप्रीम कोर्ट ने विजय शाह के वकील को निर्देश दिया कि वे पहले इस मामले को हाईकोर्ट में उचित रूप से प्रस्तुत करें। सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर अगली सुनवाई अब शुक्रवार 16 मई को करेगा।

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