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मानसिक रोगियों के इलाज के लिए ओझा, तांत्रिक, बाबाओं से ‘ संपर्क’ कर रहा स्वास्थ्य विभाग

दो साल पहले ट्रायल पर शुरू हुआ प्रोजेक्ट अब पूरे प्रदेश में लागू किया, एक साल में भोपाल के जेपी अस्पताल में तीन सौ मरीजों का किया गया इलाज

प्रवीण श्रीवास्तव-भोपाल। बदलती दिनचर्या, पारिवारिक दिक्कतें और काम के बोझ के चलते लोगों में मानसिक परेशानियां बढ़ रही हैं। नतीजा- औसतन हर पांचवां व्यक्ति किसी न किसी प्रकार की मानसिक समस्या से जूझ रहा है, लेकिन लोग इसे मानसिक समस्या न मानकर ऊपरी हवा या जादू टोना मानकर बाबा या तांत्रिक के पास पहुंच जाते हैं। इससे वे मानसिक समस्याओं से उबरने की बजाय दोनों शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान हो जाते हैं। अब स्वास्थ्य विभाग बाबा, ओझा, तांत्रिक और झाड़फूंक करने वालों के साथ मिलकर इन मरीजों को इलाज के लिए बुला रहा है। दो साल पहले ट्रायल के रूप में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट को अब प्रदेश के सभी जिलों में शुरू कर दिया गया है।

ऐसे करते हैं इलाज

जिला अस्पतालों के मनोचिकित्सक अपने आसपास के बाबाओं, तांत्रिक और झाड़फूंक करने वालों से संपर्क करते हैं। मनोचिकित्सक इन बाबाओं को कार्यक्रम के बारे में बताकर इसके लिए राजी करते हैं कि अगर उनके पास कोई ऐसा व्यक्ति आता है जिसे काउंसलिंग की जरूरत है तो उसे उनके पास भेजें। उन्हें बताया गया कि बाबाओं और फकीरों के कामकाज से उन्हें कोई समस्या नहीं है। वे अपना काम करते रहें, लेकिन डॉक्टरों की मदद भी करें।

असर: जेपी अस्पताल पहुंचे 300 से ज्यादा मरीज

भोपाल के जेपी अस्पताल के क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. राहुल शर्मा बताते हैं इस प्रोजेक्ट के बाद उन्हें काफी मदद मिली है। अब तक करीब तीन सौ से ज्यादा मनोचिकित्सक की जानकारी इन बाबाओं के माध्यम से मिल चुकी है। इन मरीजों की जेपी में काउंसलिंग और मेडिकेटेड ट्रीटमेंट के साथ इलाज किया जाता है। इसका प्रभाव भी उन पर दिख रहा है।

बीमारियों के निदान के लिए झाड़ फूंक कराते हैं

गांधी मेडिकल कॉलेज की मनोचिकित्सा विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर रुचि सोनी बताती हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग पीलिया, टायफाइड, डॉग बाइट जैसी समस्या के लिए झाड़-फूंक को मुख्य उपचार मानते हैं। यही नहीं एंग्जायटी, मेनिया, सीजोफ्रेनिया से लेकर साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर जैसी दिक्कतों को लोग समझ नहीं पाते और झाड़फूंक कराते रहते हैं।

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