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ग्वालियर व भोपाल मेडिकल कॉलेज नहीं खर्च कर पाए पूरी आवंटित राशि

कैग की रिपोर्ट में सामने आई जानकारी

धर्मेन्द्र त्रिवेदी-ग्वालियर। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के अनुसार भोपाल व ग्वालियर के चिकित्सा महाविद्यालयों को जारी लगभग 5 करोड़ के उपयोग में लापरवाही बरती गई है। भारत सरकार ने 2.50 करोड़ रुपए मल्टी डिसप्लिनरी रिसर्च यूनिट (एमआरयू) की स्थापना के लिए, 3.55 करोड़ खेल चिकित्सा केन्द्र के लिए और 2.82 करोड़ स्टेट स्पाइनल इंजरी सेंटर के लिए जारी किए थे। केन्द्र द्वारा दी गई राशि में से गांधी मेडिकल कालेज भोपाल ने 2.70 करोड़ ही खर्च किए। बाकी राशि निष्प्रयोज्य पड़ी रही।

कैग की परीक्षण टीम ने बरती गई लापरवाही को जन स्वास्थ्य की अनदेखी बताया है। भारत सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान मेडिकल कॉलेजों में अनुसंधान का माहौल तैयार करने के लिए धनराशि जारी की थी। कैग ने कहा सेंपल परीक्षण में सामने आया एमआरयू स्थापना की का उद्देश्य विफल रहा है।

लेखा परीक्षण में सामने आई यह गड़बड़ी

ऑडिट में वर्ष 2021-22 के दौरान हुई खरीद का परीक्षण किया गया। 1.25 करोड़ रुपए के आवंटन में से 61.56 लाख के उपकरण खरीदे गए। पहली किस्त की शर्तें पूरी न होने पर गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल ने दूसरी और तीसरी किस्त की पात्रता खो दी। ज्वाइंट फिजिकल वेरिफकेशन में सामने आया कि एमआरयू के लिए खरीदे गए उपकरण मई 2022 तक बगैर उपयोग के रखे रहे।

  • गजराराजा चिकित्सा महाविद्यालय को एमआरयू स्थापना के लिए मार्च 2020 में 1.25 करोड़ रुपए मिले थे। प्रबंधन ने यह धनराशि खर्च ही नहीं की।
  • खेल मंत्रालय ने गांधी चिकित्सा महाविद्यालय को खेल चिकित्सा केन्द्र की स्थापना के लिए 3.55 करोड़ रुपए दिए थे। महाविद्यालय ने न तो केन्द्र स्थापित किया और न ही केन्द्र सरकार को राशि वापस की।
  • सामाजिक न्याय मंत्रालय ने रीढ़ की हड्डी की चोटों के इलाज और प्रबंधन के लिए गांधी चिकित्सा महाविद्यालय को 2.82 करोड़ रुपए दिए। परीक्षण में सामने आया कि स्वीकृत धनराशि में से 45.49 लाख रुपए बुनियादी ढांचे के लिए पीआईयू को दिए गए। जबकि 38.90 लाख रुपए के उपकरण खरीदे गए। 1.98 करोड़ रुपए खर्च ही नहीं किए गए। स्टेट स्पाइनल इंजरी सेंटर स्थापित नहीं किया गया।

लोक स्वास्थ्य अधोसंरचना एवं स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन के ऑडिट प्रतिवेदन में जो कमियां या अच्छाइयां सामने आई हैं, वे प्रामाणिक रूप से प्रकाशित की गई हैं। -महेश प्रसाद श्रीवास्तव, उप महालेखाकार (प्रशासन)

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