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गुरु गोबिंद सिंह जयंती आज: 5 चीजों को बनाया सिखों की शान, जानें उनसे जुड़ी कुछ खास बातें…

सिख धर्म के 10वें गुरु, महान योद्धा, कवि और आध्यात्मिक गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी की आज जयंती मनाई जा रही है। सिख समुदाय के लोग अपने 10वें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के जन्मदिन को बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाते हैं। वहीं दिल्ली सरकार ने भी प्रकाश पर्व को देखते हुए वीकेंड कर्फ्यू में छूट दी है।

शर्तों के साथ मिली छूट

दिल्ली सरकार ने सिखों के त्योहार प्रकाश पर्व को देखते हुए वीकेंड कर्फ्यू में छूट दी है। डीडीएमए द्वारा जारी आदेश के मुताबिक श्रद्धालु गुरुद्वारा जाकर माथा टेक सकेंगे। हालांकि श्रद्धालुओं को कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करना होगा, ऐसा न करने पर कार्रवाई हो सकती है।

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प्रकाश पर्व के अवसर पर आइए जानते हैं गुरु गोबिंद सिंह के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें…

नानकशाही कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष पौष माह की सप्तमी तिथि पर गुरु गोबिंद सिंह की जयंती मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 22 दिसंबर 1666 में गुरु गोबिंद सिंह का जन्म हुआ था।

गुरु गोबिंद सिंह के बचपन का नाम गोबिंद राय था। साल 1699 में बैसाखी के दिन गुरु पंच प्यारों से अमृत छककर गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह हुए।

गुरु गोबिंद सिंह जी सिखों के 10वें और अंतिम गुरु थे। उनके बाद से गुरु ग्रंथ साहिब ही सिख समुदाय के मार्गदर्शक और पवित्र ग्रंथ हैं। इन्होंने ही बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही खालसा वाणी, ‘वाहे गुरु की खालसा, वाहेगुरु की फतह’ दिया था। समाज में धर्म और सत्य की स्थापना के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।

खालसा पंथ में ही गुरु ने जीवन के पांच सिद्धांत बताए थे। जिसे पंच ककार के नाम से जाना जाता है। उन्होंने कहा था कि जो भी सिख होगा, उसके लिए पांच ककार केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा अनिवार्य होगा। ये पहनकर ही खालसा वेश पूर्ण माना जाता है।

गुरु गोबिंद सिंह एक महान योद्धा होने के साथ कई भाषाओं के जानकार और विद्वान महापुरुष थे। इन्हें पंजाबी, फारसी, अरबी, संस्कृत और उर्दू समेत कई भाषाओं की अच्छी जानकारी थी।

गुरु गोबिंद सिंह जी बहादुरी की मिसाल थे। उनके लिए कहा जाता है “सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़ियों सों मैं बाज तड़ऊँ तबे गोबिंदसिंह नाम कहाऊँ”। उन्होंने सिखों को निडर रहने का संदेश दिया।

गुरु गोबिंद सिंह जी ने ही गुरु पंरपरा को खत्म करते हुए सभी सिखों को गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानने का आदेश दिया। जिसके बाद से गुरु ग्रंथ साहिब ही सिखों के मार्गदर्शक हैं। गुरु ग्रंथ साहिब को पवित्र और अहम माना गया। इस प्रकार से गुरु गोबिंद साहिब सिखों के 10वें और अंतिम गुरु थे।

गुरु गोबिंद सिंह को विद्वानों का संरक्षक माना जाता था। कहा जाता है कि उनके दरबार में हमेशा 52 कवियों और लेखकों की उपस्थिति रहती थी। इस लिए उन्हें ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता था।

गुरु गोबिंद सिंह का तीन बार विवाह हुआ था जिससे कुल चार संतानें हुईं थी- जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फतेह सिंह और अजीत सिंह।

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