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भारत में बढ़ रहा ‘गुइलेन-बैरे सिंड्रोम’ (GBS) का कहर, मुंबई में पहली मौत, पुणे में 5 नए संक्रमित मिले

मुंबई। महाराष्ट्र में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) का कहर बढ़ता जा रहा है। संदिग्ध मरीजों की संख्या के साथ-साथ मृतकों की संख्या में भी इजाफा देखने को मिल रहा है। मुंबई में इस वायरस के कारण पहली मौत हो गई है। वहीं, पुणे में पांच और लोगों में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) की पुष्टि हुई है। इसके साथ ही इस बीमारी के संदिग्ध और पुष्ट मामलों की संख्या बढ़कर 197 हो गई है। जीबीएस से जुड़ी मौतों की संख्या बढ़कर 8 हो गई है।

मुंबई में 53 साल के बुजुर्ग ने तोड़ा दम

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नायर हॉस्पिटल में भर्ती 53 साल के एक मरीज की जीबीएस के कारण मौत हो गई। वह वेंटिलेटर पर थे। शुक्रवार को ही शहर में जीबीएस का पहला मामला सामने आया था। तभी 64 साल की एक महिला को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

बीएमसी अधिकारियों ने बताया कि शहर के अंधेरी ईस्ट इलाके की रहने वाली महिला को बुखार और डायरिया के बाद लकवाग्रस्त होने की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) क्या है ?

  • GBS एक ऑटोइम्यून न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें इम्यून सिस्टम अपनी ही नर्व्स पर हमला करता है। यह एक रेयर सिंड्रोम है।
  • यह बीमारी पेरिफेरल नर्वस सिस्टम (शरीर की अन्य नर्व्स) को प्रभावित करती है, जिससे मांसपेशियों तक सिग्नल पहुंचने में दिक्कत होती है।
  • इसके कारण रोगी को उठने-बैठने, चलने और सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। कुछ मामलों में लकवा भी हो सकता है।
  • यह बीमारी आमतौर पर किसी बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण के बाद होती है। पुणे में E. कोली बैक्टीरिया का स्तर अधिक पाया गया है।
  • हर साल पूरी दुनिया में इलके लगभग एक लाख से ज्यादा केस सामने आते हैं, जिनमें ज्यादातर मरीज पुरुष होते हैं।
  • ये बीमारी आमतौर पर मेडिसिन से ठीक हो जाती है। मरीज 2-3 हफ्तों में बिना किसी सपोर्ट के चलने लगता है। हालांकि, कुछ मामलों में मरीज के ठीक होने के बाद भी उसके शरीर में कमजोरी बनी रहती है।

गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) के शुरुआती लक्षण:

  • हाथों-पैरों में झुनझुनी और कमजोरी महसूस होना।
  • पैर में कमजोरी और चलने-फिरने में समस्या, जैसे सीढ़ियां चढ़ने में कठिनाई।
  • बोलने, चबाने या खाना निगलने में परेशानी।
  • डबल विजन या आंखों को हिलाने में कठिनाई।
  • खासकर मांसपेशियों में तेज दर्द होना।
  • पेशाब और मल त्याग में समस्या होना।
  • सांस लेने में परेशानी होना।

अगर इन लक्षणों को नजरअंदाज किया जाए, तो यह बीमारी तेजी से बढ़ सकती है और लकवा (पैरालिसिस) का कारण बन सकती है। यह स्थिति दो हफ्ते के भीतर गंभीर हो सकती है, इसलिए लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

कितने तरह का है ये सिंड्रोम

1. एक्यूट इंफ्लेमेटरी डेमायलीनिएटिंग पोलिरैडिकुलोन्यूरोपैथी (AIDP):

  • यह GBS का सबसे सामान्य प्रकार है।
  • इसमें नर्वस सिस्टम की परत (मायलिन) में सूजन होती है।
  • मुख्य लक्षण: पैरों से ऊपर की ओर बढ़ने वाली मांसपेशियों की कमजोरी।
  • यह सिंड्रोम उत्तर अमेरिका और यूरोप में आम है।

2. मिलर फिशर सिंड्रोम (MFS):

  • इसमें पहले आंखों में जलन और दर्द होता है।
  • यह सिंड्रोम मुख्य रूप से एशिया में ज्यादा पाया जाता है।

3. एक्यूट मोटर एक्सोनल न्यूरोपैथी और एक्सोनल न्यूरोपैथी:

  • यह दोनों प्रकार चीन, जापान और मेक्सिको में अधिक होते हैं।
  • उत्तर अमेरिका में इनकी घटनाएं कम होती हैं।
इम्युनोग्लोबुलिन थेरेपी

गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (GBS) से बचाव और इलाज

प्लाज्मा एक्सचेंज:

  • इसमें ब्लड की प्लाज्मा को बदला जाता है।
  • यह प्रक्रिया शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में मदद करती है और नर्वस सिस्टम को आराम देती है।

इम्युनोग्लोबुलिन थेरेपी:

  • इसमें एंटीबॉडी की खुराक दी जाती है जो इम्यून सिस्टम के खिलाफ काम करती है।
  • यह तंत्रिका कोशिकाओं को अधिक नुकसान से बचाती है।

पेन किलर और फिजियोथेरेपी:

  • दर्द को कम करने के लिए पेन किलर दी जाती है।
  • फिजियोथेरेपी से मरीज की शारीरिक स्थिति सुधारने में मदद मिलती है।

हालांकि, GBS का कोई सटीक इलाज नहीं है। लेकिन इन उपायों से लक्षणों को कम किया जा सकता है और रिकवरी में मदद मिलती है।

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