भोपाल। मंदिरों के नाम संपत्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया। जस्टिस हेमंत गुप्ता और एएस बोपन्ना की बेंच ने मंगलवार को मध्य प्रदेश के एक मंदिर के मालिकाना हक पर सुनवाई की और कहा कि मंदिरों के नाम संपत्ति के मालिक देवता हैं, ना कि पुजारी। पुजारी की भूमिका तो सिर्फ एक सेवक के रूप में है। वे काश्तकार नहीं, सिर्फ रक्षक हैं।
सुप्रीम कोर्ट डबल बेंच ने अहम फैसला सुनाते हुए दूसरे धार्मिक स्थलों के पुजारियों को भी स्पष्ट कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने भू-राजस्व के रिकॉर्ड से पुजारियों के नाम हटाने के भी आदेश दिए। भूस्वामी के तौर उस समुचित कॉलम में देवता का ही नाम ही रहेगा। वहीं, पुजारियों का तर्क है कि उन्हें भूमिस्वामी अधिकार प्रदान किए गए हैं, इसे कार्यकारी निर्देशों द्वारा वापस नहीं लिया जा सकता है।
रिकॉर्ड में पुजारियों को सेवक के रूप में दर्ज करें
कोर्ट का कहना था कि पुजारी एक किराएदार जैसा है। मंदिर में जो भी पुजारी होगा, वही वहां देवी-देवताओं को भोग लगाएगा। वे मंदिर से संबंधित जमीन पर खेती-बारी का काम भी संभालेंगे। सभी रिकॉर्ड में पुजारी की स्थिति सेवक के रूप में ही होगी। मालिक के रूप में नहीं होगी। देवता की मान्यता कानूनी व्यक्ति के रूप में विधि सम्मत है। लिहाजा, पुजारियों के नाम भू-राजस्व रिकॉर्ड से हटाए जाएं। भूस्वामी के तौर पर देवती का ही नाम रहेगा।
मामले में अयोध्या समेत कई फैसलों का जिक्र
बेंच ने इस मामले में अयोध्या समेत पहले के कई फैसलों का जिक्र किया है। जिसमें मंदिर के मुख्य अधिष्ठाता देवता रामलला को कानूनी व्यक्ति होने की मान्यता देते हुए मंदिर से जुड़ी सभी भूमि के स्वामित्व का अधिकार दिया गया था। मामले में अपीलकर्ता के लिए अधिवक्ता सौरभ मिश्रा और प्रतिवादी के लिए अधिवक्ता लाहोटी मौजूद रहे।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार के सर्कुलर को बरकरार रखा
दरअसल, सरकार द्वारा मप्र भू-राजस्व संहिता, 1959 के तहत इन परिपत्रों को पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था। अपील में राज्य ने तर्क दिया कि मंदिर की संपत्तियों को पुजारियों द्वारा अनाधिकृत बिक्री से बचाने के लिए इस तरह के कार्यकारी निर्देश जारी किए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में हाईकोर्ट के फैसले को उलटते हुए मध्य प्रदेश सरकार के सर्कुलर को बरकरार रखा है।