भोपाल। आज 10 सितंबर है। यानी शुक्रवार/ गणेश चतुर्थी। भगवान गणेश का 10 दिवसीय उत्सव शुरू हो गया है। सुबह से श्रद्धालु गणेश मंदिरों पहुंच रहे हैं। कोरोना के चलते इस साल भीड़वाले कार्यक्रम नहीं होंगे। पांडालों में गणेशजी की प्रतिमा सजेगी और महाआरती होगी। आज हम आपको मध्य प्रदेश के चार मशहूर गणेश मंदिरों की कहानी बता रहे हैं। यहां देशभर के लोग मन्नतें लेकर आते हैं और हंसी-खुशी वापस लौटते हैं।
इंदौर: खजराना गणेश सोने के आभूषणों से होता है श्रृंगार
इंदौर के खजराना गणेश मंदिर का जीर्णोद्धार 1735 में शुरू हुआ। कहा जाता है कि यहां एक बावड़ी के पास गणेश प्रतिमा मिली थी। तत्कालीन होलकर घराने चाहता था कि प्रतिमा को राजबाड़ा लाया जाए और यहां मंदिर बनाकर स्थापित करें। मगर, प्रतिमा काे उठाया नहीं जा सका। आखिरकार वहीं मंदिर बनाने का निर्णय लिया गया। मंदिर के पुजारी पं. अशोक भट्ट बताते हैं कि यह प्रतिमा परमारकालीन है। गणेश चतुर्थी पर मोतियों का चोला चढ़ाया गया। चार किलो सोने से बने स्वर्ण आभूषण भगवान गणेशजी, रिद्धि-सिद्धि और लाभ-शुभ को पहनाए गए। इनकी कीमत 2 करोड़ रुपए है। मंदिर में हर महीने करीब 40 लाख रुपए चढ़ावा आता है।

ग्वालियर: गणेश मंदिर में तानसेन का हकलाहट हुई थी दूर
ग्वालियर से 55 किमी दूर बेहट के ऐतिहासिक गणेश मंदिर के बारे में भी मान्यता है। इस कस्बे में संगीत सम्राट तानसेन का जन्म हुआ था। कहते हैं तानसेन बचपन में हकलाते थे। उनके पिता शिवालय के बगल में स्थित इसी गणेश मंदिर में दर्शन के लिए लाए थे। इसके बाद तानसेन मंदिर परिसर में ही बैठकर संगीत रियाज करने लगे और यहीं उन्होंने‘श्रीगणेश स्रोत’की रचना की थी। जिसे गणेश चतुर्थी पर सदियों से घरों में सुबह से गाया जाता है- ‘उठि प्रभात सुमिरियै, जै श्री गणेश देवा, माता जा की पार्वती पिता महादेवा।’ पुजारी संजीव शर्मा बताते हैं कि ग्रामीणों की मान्यता है कि यहीं गणेशजी के आशीर्वाद से तानसेन की हकलाहट दूर हुई थी और उन्हें मधुर आवाज का आशीर्वाद मिला था।

उज्जैन: चिंतामन गणेश में बिना मुहूर्त के कराई जाती है शादी
उज्जैन के चिंतामन गणेश मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य के शासनकाल में हुआ। मान्यता है कि जिनकी शुभ लगन नहीं निकलती है, उनके विवाह बिना मुहूर्त के यहां कराए जाते हैं। जिनके विवाह में बाधा आती है, वे यहां मन्नत मांगते हैं। विवाह तय हो जाने पर मंदिर परिसर में सात-फेरे लेते हैं। श्रद्धालु निर्विघ्न विवाह के लिए चिंतामण गणेश को मनाकर घर ले जाते हैं। विवाह हो जाने पर वर-वधु को आशीर्वाद दिलाने लाते हैं। मंदिर के गर्भगृह में तीन प्रतिमाएं हैं- चिंतामण, इच्छामण और सिद्धि विनायक। माना जाता है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, जानकी और लक्ष्मण यहां आए थे। उन्होंने यहां तीन प्रतिमाओं की स्थापना की थी।

सीहोर: चिंतामन सिद्ध गणेश : आधी जमीन में धंसी है प्रतिमा
सीहोर के चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर में प्रतिमा आधी जमीन में धंसी है। मंदिर को लेकर दो मान्यताएं हैं। पहली यह है कि प्रतिमा की स्थापना राजा विक्रमादित्य के शासनकाल में हुई थी। कहा जाता है विक्रमादित्य एक स्वप्न आने पर पार्वती नदी से प्राप्त कमल पुष्प को रथ पर लेकर जा रहे थे। रास्ते में उसका पहिया जमीन में धंस गया और उस कमल से गणेश की यह प्रतिमा प्रकट होने लगी। विक्रमादित्य उसे निकालने का प्रयास कर रहे थे, पर वह जमीन में धंसने लगी। इसके बाद उन्होंने प्रतिमा यहीं स्थापित कर दी।
पेशवा बाजराव को लेकर भी मान्यता
दूसरी मान्यता है कि अपने साम्राज्य का विस्तार करने निकले पेशवा बाजीराव सीहोर पहुंचे तो यहां पार्वती नदी उफान पर थी। लोगों ने बताया कि यहां गणेशजी स्वयं विराजमान हैं। उनकी आराधना करें तो उफान शांत हो जाएगा। उन्होंने प्रार्थना की तो ऐसा ही हुआ। उन्होंने मंदिर का विस्तार कराया। मंदिर श्रीयंत्र के कोणों पर स्थित है। तब इस कस्बे का नाम सिद्धपुर था।
