
बाबा महाकाल को वैशाख एवं ज्येष्ठ मास की भीषण गर्मी में ठंडक देने मिट्टी के कलशों से जलधारा प्रवाहित की जा रही है। मंदिर की परंपरा अनुसार, वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से ज्येष्ठ पूर्णिमा तक 2 माह मिट्टी की गलंतिका (कलश) बांधी जाती है, जो आज से शुरू हो गई है। इनसे प्रतिदिन सुबह 6 से शाम 4 बजे तक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर ठंडे जल की धारा प्रवाहित होगी।
महाकालेश्वर मंदिर के गर्भगृह में बांधी मिट्टी के कलश की गलंतिका। 2 माह तक बाबा महाकाल की शीतलता के लिए प्रवाहित होगी जलधारा#ujjain #BabaMahakal #PeoplesUpdate
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— Peoples Samachar (@psamachar1) April 17, 2022
वैशाख व ज्येष्ठ मास में होती है अत्यधिक गर्मी
बता दें कि, भगवान महाकाल के शीश पर मिट्टी के कलश बांधने को गलंतिका कहते हैं। महाकाल मंदिर की परंपरा अनुसार वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से ज्येष्ठ पूर्णिमा तक 2 माह सुबह 6 बजे से शाम 4 बजे तक गलंतिका बांधी जाएगी। इसमें 11 मिट्टी के कलश हैं। पुजारियों के मुताबिक, वैशाख व ज्येष्ठ मास में अत्यधिक गर्मी होती है। भीषण गर्मी में भगवान महाकाल को शीतलता प्रदान करने के लिए मिट्टी के कलशों से जलधारा प्रवाहित की जाती है।
क्या है धार्मिक मान्यता ?
पुजारी प्रदीप गुरु के मुताबिक, समुद्र मंथन के समय भगवान शिव ने गरल (विष) पान किया था। वहीं धार्मिक मान्यता के अनुसार गरल अग्निशमन के लिए ही शिव का जलाभिषेक किया जाता है। गर्मी के दिनों में विष की उष्णता (गर्मी) और भी बढ़ जाती है। इसलिए वैशाख व ज्येष्ठ मास में भगवान को शीतलता प्रदान करने के लिए मिट्टी के कलश से ठंडे पानी की जलधारा प्रवाहित की जाती है।
इन नामों को लिखकर बांधी जाती गलंतिका
माना जाता है कि इन कलश से प्रवाहित जलधारा को गंगा, यमुना, गोदावरी समेत अन्य नाम लिखकर बांधी जाती है। ये गलंतिका वैशाख कृष्ण प्रतिपदा से लगाई जाती हैं, जो ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा तक करीब दो माह बंधी रहेगी। मान्यता है कि भगवान महाकाल इससे तृप्त होकर राष्ट्र व प्रजा के कल्याण के लिए सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं।