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MP स्टेट फार्मेसी काउंसिल में फर्जीवाड़ा : 2 बाबू गिरफ्तार, 2 साल में 200 फर्जी मार्कशीट बनाकर कमाए लाखों रुपए

इंदौर। विजय नगर थाना पुलिस ने भोपाल के दो क्लर्कों को गिरफ्तार किया है। दोनों भोपाल में रहकर इस गोरखधंधे को अंजाम दे रहे थे। जानकारी के मुताबिक, ये दोनों एमपी स्टेट फार्मेसी काउंसिल में LDC और UDC के पद पर कार्यरत है। प्रारंभिक जानकारी के मुताबिक दोनों ने विगत 2 सालों में 200 से ज्यादा फर्जी मार्कशीट्स बनाकर 50 लाख रुपए की काली कमाई की है।

पुलिस के मुताबिक ये दोनों बाबू जरूरतमंद लोगों से फर्जी मार्कशीट के लिए 20 से 25 हजार रुपए लेते थे। एक अनुमान के मुताबिक दोनों बाबू केवल दो साल के दौरान 50 लाख रुपए की काली कमाई कर चुके हैं। ऐसे में पुलिस उनके बैंक खातों की भी जांच कर रही है।

पुलिस जांच में हुआ हकीकत का खुलासा

इंदौर की विजयनगर थाना पुलिस को डी फार्मा, बी फार्मा और एम फार्मा जैसे डिग्रियों की फार्मसी कोर्स की फर्जी मार्कशीट बनाने की शिकायत मिली थी। यह मार्कशीट दवा दुकान खोलने के लिए जरूरी होती है। इसके बाद पुलिस ने इसकी तफ्तीश अपने स्तर पर शुरू की। जब पुलिस ने सुराग जुटाए तो शक की सुई मध्य प्रदेश स्टेट फार्मेसी काउंसिल के ही दो बाबूओं पर आकर टिक गई। मामला इंदौर का था और आरोपी भोपाल के, लिहाजा पुलिस ने पूरी जांच और सबूत जुटाने के बाद फर्जी मार्कशीट घोटाले के सूत्रधार विजय शर्मा और सत्य नारायण पांडे को भोपाल जाकर हिरासत में ले लिया।

फर्जी मार्कशीट।

पुलिस को शक, 200 से कहीं ज्यादा बनाईं फर्जी मार्कशीट

इंदौर पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक, हिरासत में लिए गए दोनों क्लर्क लगभग 20 सालों से फार्मेसी काउंसिल में काम कर रहे हैं। हालांकि, इंदौर में दर्ज मामले की जांच के दौरान पुलिस को अब तक 200 से अधिक फर्जी मार्कशीट बनाने की जानकारी मिली है, लेकिन पुलिस को शक है कि असल आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा हो सकता है। फिलहाल, दोनों आरोपी पिछले दो साल से ही इस गोरखधंधे में शामिल होने की बात कह रहे हैं। लेकिन, पुलिस इनके कार्यकाल के दौरान जारी हुई सभी मार्कशीट की जांच के लिए संबंधित अफसरों से भी संपर्क करेगी।

पुलिस की पूछताछ के दौरान इन्होंने बताया है कि वे कैंडिडेट के हिसाब से हर एक फर्जी मार्कशीट के लिए अलग रकम लेते थे। किसी को केवल 20 हजार रुपए में तो किसी को 40 हजार तक में फर्जी मार्कशीट बनाकर बेचते थे। पुलिस के अनुसार, यह दोनों महज कुछ दिनों के भीतर ही ऐसी फर्जी मार्कशीट बनाकर दे देते थे, जो दिखने में हूबहू असली जैसी लगती थी।

(इनपुट – हेमंत नागले)

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