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अपनों का चेहरा भूल रहे, नाम भी नहीं रहता याद

कोरोना के साइड इफेक्ट : न्यूरोलॉजिस्ट और मानसिक रोग विशेषज्ञों के पास पहुंच रहे मामले

प्रवीण श्रीवास्तव भोपाल। कोरोना संक्रमण का असर अब भी परेशान कर रहा है। लंबे समय तक कोरोना से पीड़ित रहे लोगों में अब चेहरे पहचानने, नाम याद रखने और रास्तों की पहचान में परेशानी हो रही है। डॉक्टरों के मुताबिक इसे ‘प्रोसोपैग्नोसिया’ या ‘फेस ब्लाइंडनेस’ कहते है। इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल कोर्टेक्स में इस शोध को प्रकाशित किया गया है।

केस-1

निजी कॉलेज में प्रोफेसर डॉ. स्वाति देशपांडे कोरोना की दूसरी लहर में लंबे समय तक संक्रमित रहीं। 20 दिन तक वेंटीलेटर पर रहने के बाद कई दिनों तक ऑक्सीजन सपोर्ट पर रहीं। अब उन्हें नाम और चेहरा भूलने की बीमारी हो गई। डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना के साइडइफेक्ट के चलते उन्हें न्यूरोजिकल डिसऑर्डर हो गया है।

केस-2

न्यूमार्केट मे रहने वाले राकेश सक्सेना भी चेहरा भूलने की बीमारी से पीड़ित हैं। वे बताते हैं कि रास्ते में जाते समय छोटे भाई ने आवाज दी, उन्होंने आवाज पहचान ली लेकिन चेहरा याद नहीं आ रहा था। ऐसी दिक्कत बढ़ी तो डॉक्टर के पास पहुंचे। मानसिक रोग चिकित्सक से परामर्श के बाद लंबे इलाज से अब स्थिति बेहतर है।

बढ़ गए मरीज

न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. निरेन्द्र राय का कहना है कि यह दुर्लभ बीमारी नहीं है, लेकिन कोरोना के बाद इसकी संख्या बढ़ गई है। पहले हमारे पास सप्ताह में 2 से 3 मरीज आते थे अब संख्या 6 से 7 हो गई है। कोरोना संक्रमण के बाद कई लोगों में दिमाग के अलग अलग हिस्सों का आपसी सामंजस्य कम हुआ है।

क्या है फेस ब्लाइंडनेस

दुनिया में 2 से 2.5% लोगों के इससे प्रभावित होने का अनुमान है। ऐसे मरीजों को लोगों को पहचानने के लिए आवाजों पर निर्भर रहना पड़ता है। कई बार बीमारी इतनी गंभीर हो जाती है कि मरीज चेहरे भी नहीं पहचान पाते।

कोविड के चलते ब्रेन के कई हिस्सों में रक्त वाहिकाओं में परिवर्तन आना, इनफ्लेमेशन होना शामिल हैं। ऐसे केसेस का आना यह बता रहा है कि कोविड ने हमारे ब्रेन के उच्च कार्यों को प्रभावित किया है। -डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, मनोरोग विशेषज्ञ

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