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मप्र में पहली बार क्षत्राणियों के वोट से पलटा चुनावी पांसा

इलेक्शन मेमोरी : मालवा अंचल के मंदसौर जिले की चिंगारी ने पड़ोसी राज्यों में भी असर दिखाया

राजीव सोनी पॉलिटिकल एडिटर/ आ जादी के बाद राजपूत समाज की महिलाओं में 2-3 संसदीय चुनाव में शुरुआती हिचक के बाद वोटिंग को लेकर व्यापक रूप से जन-जागरुकता फैली। इसका श्रेय मंदसौर के राजपूत परिवारों को है। दरअसल, 1964 के चुनाव में बात जब समाज की आन-बान पर आ गई थी..इसके बाद तो घर-घर से पर्दानशीं क्षत्राणियां निकलीं और मतदान केंद्रों तक जा पहुंचीं और चुनाव का नतीजा ही बदल गया। मध्यप्रदेश में छह दशक पहले मंदसौर जिले से निकली यह चिंगारी ग्वालियर-चंबल, बघेलखंड व बुंदेलखंड सहित पड़ोसी राज्य राजस्थान और उत्तरप्रदेश में भी फैल गई। 1967 के संसदीय और विधानसभा चुनाव में तो बड़ी संख्या में क्षत्राणियां घरों की चौखट से वोट डालने निकलीं। मंदसौर जिले के वयोवृद्ध नेता और पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह सिसोदिया बताते हैं कि यह कहानी है दीये और तूफान की…दरअसल, 1964 के उपचुनाव के दौरान सीतामऊ से तत्कालीन कांग्रेसी और दिग्गज नेता भंवरलाल नाहटा के खिलाफ जनसंघ के टिकट पर ठाकुर किशोर सिंह चुनाव मैदान में थे।

आन-बान की खातिर घरों से निकलीं पर्दानशीं

चुनावी रणनीतिकारों ने सारा गणित लगाने के बाद यही निष्कर्ष निकाला कि उनकी चुनावी जीत का रास्ता राजपूत समाज की महिलाओं की वोटिंग से ही निकलेगा। तब तक समाज की महिलाएं वोट के लिए नहीं निकलती थीं। इसके बाद विचार विमर्श के सत्र चले और निर्णय हो गया कि जब बात समाज की आन-बान की है तो पर्दानशीं क्षत्राणियां भी वोट करेंगीं।

सुर्खियों में बना रहा 1964 का वह चुनाव

राजपूत बहुल क्षेत्र के इस ऐतिहासिक और प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव का नतीजा जब सामने आया तो सभी लोग चौंक गए क्योंकि क्षत्राणियों के वोटों की ताकत ने नाहटा जैसे दिग्गज नेता को परास्त कर दिया। इसके बाद तो 1967 के चुनाव में प्रदेश के सभी अंचलों सहित अन्य राज्यों में भी क्षत्राणियों ने जमकर वोटिंग में भाग लिया। भाजपा के प्रवक्ता एवं पूर्व विधायक यशपाल सिंह सिसोदिया कहते हैं कि इस घटना की चर्चा कई वर्षों तक देश में बनी रही।

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