भोपाल। देश भर में इस समय सबकी नजरें बंगाल की खाड़ी में उठे फेंगल तूफान पर हैं। बंगाल की खाड़ी में बना डिप्रेशन शुक्रवार की सुबह चक्रवाती तूफान ‘फेंगल’ में बदलने की उम्मीद थी। हालांकि, इसकी गुंजाइश अब बहुत कम हो गई है। मौसम वैज्ञानिक वीएस यादव ने बताया कि यह तूफान डिप्रेशन के स्टेज को भी पार नहीं कर पाएगा। हालांकि, फेंगल को लेकर भारतीय मौसम विभाग ने अलर्ट जारी किया है। इससे तमिलनाडू और आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्रों में तेज हवाओं के साथ बारिश हो सकती है। तमिलनाडु के कई जिलों में स्कूल कॉलेज बंद रखने का फैसला लिया गया है। साथ ही, इससे कुछ फ्लाइट्स भी प्रभावित हुई हैं।
नहीं होगा एमपी में कोई असर
मौसम वैज्ञानिक वीएस यादव ने बताया कि फेंगल तूफान अभी डिप्रेशन की स्टेज में है और यह इस स्टेज को पार नहीं कर पाएगा। जिससे इसके तूफान बनने की संभावनाएं शून्य हो गई हैं। मध्य प्रदेश की बात करें, तो इसका कोई असर प्रदेश में देखने को नहीं मिलेगा। मध्य प्रदेश सहित पूरे उत्तर के इलाकों में सिर्फ बादल छा सकते हैं। बारिश की भी कोई संभावना नहीं है।
फेंगल तूफान की सबसे पहले तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों से टकराने की संभावना है, जहां तेज रफ्तार से हवाएं चल सकती हैं और भारी बारिश हो सकती है। इसका असर अधिकतम 2 दिनों तक रहेगा। इसका तटीय क्षेत्रों से टकराने के बाद ही घनत्व कम हो जाएगा। इस कारण इसके असर में भी लगातार कमी आएगी।
सबसे अधिक चक्रवात और तूफान बंगाल की खाड़ी से क्यों उठते हैं
चक्रवात और तूफान को लेकर पिछले 120 सालों का रिकॉर्ड देखें तो 14 फीसदी चक्रवाती तूफान और 23 फीसदी भयंकर चक्रवात अरब सागर में आए हैं। वहीं, बंगाल की खाड़ी की बात करें तो यहां 86 प्रतिशत चक्रवाती तूफान और 77 प्रतिशत भयंकर चक्रवाती तूफान आए हैं।
बंगाल की खाड़ी में उठने वाले अधिक चक्रवात और तूफान की बता करें तो, अरब सागर की तुलना में बंगाल की खाड़ी में अधिक तूफान उठने का सबसे बड़ा कारण हवा का रुख और तापमान है। बंगाल की खाड़ी पूर्वी तट पर मौजूद है, जहां तापमान पश्चिमी तट पर स्थित अरब सागर के मुकाबले गर्म रहता है। इसी वजह से बंगाल की खाड़ी हमेशा दबाव में रहती है। वहीं, अरब सागर का तापमान ठंडा रहता है। वीएस यादव ने बताया कि ठंडे सागर के मुकाबले गर्म सागर में तूफान अधिक आते हैं। इसमें अधिक तापमान का खास दखल होता है।
बंगाल की खाड़ी का असर भारत पर ही क्यों
वैसे तूफान तो अरब सागर में भी बनते हैं, लेकिन ये भारत के पश्चिमी तट को छोड़ते हुए उत्तर पश्चिम की दिशा में बढ़ जाते हैं। यह तूफान अधिक ताकतवर भी नहीं होता। वहीं, पूर्वी तट पर बने तूफान अधिक ताकतवर होते हैं और यह भारत-गंगा के मैदानी इलाकों में उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ते हैं, जिससे इसका व्यापक असर देखने को मिलता है। वैसे तो साल में अप्रैल से दिसंबर तक तूफानों के बनने का समय होता है लेकिन 65 फीसदी तूफान साल के आखिरी चार महीनों सितंबर से दिसंबर के बीच ही आते हैं।
कैसे रखा जाता है चक्रवात का नाम
विश्व मौसम विज्ञान संस्थान में चक्रवातों का नाम और इसकी सूची रखी जाती है। इसमें अलग-अलग देश चक्रवात के नाम की लिस्ट भेजते हैं। नाम रखते समय यह ध्यान रखा जाता है कि चक्रवात का नाम किसी विशेष धर्म या किसी समुदाय से न जुड़ा हो। इसके साथ ही, तय किया गया नाम किसी व्यक्ति विशेष की भावना को आहत न करता हो। नाम रखने के पीछे एक बड़ी वजह यह भी होती है कि चक्रवात की पहचान की जा सके। मान लीजिए, किसी क्षेत्र में पहले से ही तूफान की आमद हुई है, ऐसे में उस क्षेत्र में कोई दूसरा तूफान आता है तो उसकी पहचान करने में परेशानी पेश आएगी। इसीलिए नाम की विशेष महत्व होती है।
नाम को तय करने में एक और चीज का खास महत्व होता है। मान लीजिए, मौसम विभाग ने चक्रवात या तूफान को लेकर अलर्ट जारी किया और विश्व मौसम विज्ञान संस्थान की सूची के मुताबिक चक्रवात का नाम भी रख दिया (जो कि किसी देश ने भेजा होगा और हर देश की बारी अलग-अलग आती है) और चक्रवात या तूफान विकराल रूप न लेकर सिर्फ डीप डिप्रेशन की हद से गुजर जाता है, तब वह नाम अगले चक्रवात या तूफान के लिए रिजर्व कर दिया जाता है।
ठीक वैसे ही, जैसे इस बार फेंगल नाम को रिजर्व कर दिया गया है, जो संभावित अगले तूफान या चक्रवात के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। इसकी वजह भी यही रही कि यह तूफान डिप्रेशन के स्टेज को भी पार नहीं कर सका।