पल्लवी वाघेला-भोपाल। वर्ष 1949 का एक जून का दिन भोपाल कभी नहीं भूल सकता। समूचे देश को भले 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली हो, पर भोपाल के लोगों को दो साल बाद आजादी नसीब हुई। इस आजादी के लिए तत्कालीन भोपाल रियासत के नवाब हमीदुल्ला खां की हठधर्मिता के खिलाफ लोगों को विलीनीकरण आंदोलन शुरू करना पड़ा। आंदोलन इतना विशाल हुआ कि छात्र और महिलाएं भी इसका हिस्सा बन गए। कई लोगों की शहादत भी हुई और जमकर नारे लगे- ‘नवाब साहब राज छोड़ो, भारत में मिलो।’
करना पड़ती थी शांति भंग भोपाल के विलीनीकरण आंदोलन में स्टूडेंट के रूप में शामिल हुए देवी सरन उस दौर को याद करते हुए नवाब साहब के खिलाफ यह नारा एक बार फिर जोर से दोहरा देते हैं। भोपाल के नगर निगम के पहले कमिश्नर रहे देवी सरन की पहचान प्रशासनिक सेवक के अलावा उत्कृष्ट लेखन करने वाले व्यक्ति के रूप में भी है। नवाबी जमाने के किस्से जानने और इतिहास के पन्नों को पलटने के लिए लोग उनके पास आते रहते हैं और उन्हें इनसाइक्लोपीडिया कह कर पुकारते हैं।
वह बताते हैं कि भारत की आजादी के बढ़ने के साथ ही भोपाल में भी आंदोलन उग्र रूप भी बढ़ता गया। आंदोलनकर्ता शांति भंग करते थे। ‘राजागिरी हुई समाप्त, सरदार पटेल की बात सुनो’ कहते हुए दुकानें बंद करवाते थे और नवाब साहब पर दबाव बनाने की हर संभव कोशिश करते थे।
97 साल के देवी सरन कहते हैं, उस आंदोलन में शामिल 90 फीसदी लोग अब दुनिया में नहीं हैं। उस वक्त प्रमुख आंदोलनकारियों में बालकृष्ण गुप्ता, अक्षय कुमार जैन, मोहिनी देवी, शांति देवी, जैसे अनेक नाम शामिल थे। महिलाएं भी जेल गर्इं। वह बताते हैं कि जितना याद है कि इस दौरान आधा दर्जन से अधिक युवाओं ने अपनी जान गवाई। 10 हजार से अधिक लोग आंदोलन में शामिल हुए। खुली और बंद जेलों में हजारों आंदोलनकारियों को बंद किया। तब जाकर 659 दिन बाद भोपाल पूरी तरह से आजाद हुआ और इसका भारत में विलय हुआ।
राज्य संग्रहालय में मौजूद हैं इतिहास की ये अहम बातें
आजादी से पहले के भोपाल की कई अहम तस्वीरें और ब्रिटिश काल की संधियों के कई दस्तावेज श्यामला हिल्स स्थित राज्य संग्रहालय में मौजूद हैं। प्रभारी संग्रहाध्यक्ष मनोहर सिंह उइके ने बताया कि संग्रहालय में 17 गैलरी हैं, जिनमें भोपाल नवाब का कलेक्शन भी शामिल है। भोपाल से जुड़ी बातों और यादों में रुचि रखने वाले संग्रहालय में इन्हें देख सकते हैं।
राजा भोज
परमारवंशीय भोज मालवा (धार) के राजा थे। वह 1010 ईसवीं में मंत्री कल्याण सिंह के साथ भोपाल आए थे। यहां वह ताल के निर्माण हेतु भोजपुर के अलावा ताल के पाल बंधान की जगह देखने धरमपुरी गांव भी आए थे। धरमपुरी आज के श्यामला हिल्स पर स्थित था। राजा भोज ने जो ताल बनवाया वह अपने वर्तमान स्वरूप से काफी गुना बड़ा था। यही बड़ा ताल भोपाल शहर के बसने का आधार बना।इसी कारण गोंड राजाओं और मुस्लिम शासकों ने इसे अपनी कर्मस्थली बनाया।
रानी कमलापति और उनके पूर्वज
कहा जाता है गौंड राजा भूपाल (669-679 ईसवीं) शाह की राजधानी भोपाल था। उन्हीं के समय कुछ लोगों को यहां बसाने और उन्हें खेती के लिए जमीन आवंटित हुई। 1100 साल यहां गौंड राजाओं का शासन रहा। हालांकि रानी कमलापति के पहले तक गिन्नौरगढ़ ही राज्य का केंद्र रहा और भोपाल में कमलापति के महल के पास बहुत थोड़ी बसाहट थी। यहां 1700 ई. में गोंड आदिवासियों की बसाहट बढ़ी थी। कमलापति अपने साहस और खूबसूरती के लिए जानी जाती हैं। उनके गिन्नौरगढ़ से छोटे ताल किनारे कमलापति महल में आकर रहने के बाद भोपाल का महत्व बढ़ा।
दोस्त मोहम्मद खान
खैबर पख्तून के तिराह से आए दोस्त मोहम्मद खान भोपाल रियासत के संस्थापक थे। इससे पहले वह मुगल सेना में रहे। कहते हैं जगदीशपुर की रानी की मृत्यु के बाद उन्होंने उस राज्य पर कब्जा कर लिया। भोपाल में उन्होंने रानी कमलापति की उनके भतीजे से बदला लेने में मदद की। हालांकि बाद में उनके बेटे की हत्या कर राज्य कब्जा लिया। दोस्त मोहम्मद ने भोपाल ताल के किनारे फतेहगढ़ किला बनाया, जो आधुनिक भोपाल की बसाहट का आधार बना। पहले बसाहट किले के अंदर थी, लेकिन कुछ ही समय में किले के मंगलवारा, बुधवारा आदि गेटों के बाहर बसाहट होने से भोपाल का विस्तार शुरू हुआ।
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