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दो टाइम की रोटी नहीं थी, अब दूसरों को दे रही हैं रोजगार

कुछ सिलाई मशीनों से की थी शुरुआत, अब हैं दस कारखाने; बच्चों को इंग्लिश मीडियम में पढ़ा रहीं महिलाएं

सिद्धार्थ तिवारी- जबलपुर। जिस घर की महिला शिक्षित एवं सशक्त होती है, उस घर की उन्नति होना तय है। कुछ इसी उद्देश्य को लेकर 10 साल पहले चले अनुराग जैन ने सैकड़ों शहरी और ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक सुधार में योगदान दिया है। कुछ सिलाई मशीनों से हुई शुरुआत अब 10 बड़े कारखाने में बदल गई है। पहले महिलाओं के पास दो टाइम की रोटी नहीं थी अब दूसरों को रोजगार दे रही हैं।

इतनी मिलती है मजदूरी: महिलाओं को एक पीस तैयार करने के 15 से 60 रु. मिलते हैं। उनके पास कटे हुए कपड़े आते है, जिसकी सिलाई करनी होती है। एक दिन में एक महिला 25 पीस तक तैयार कर लेती है।

महिलाओं ने बताया कैसे बदला जीवन

संजीवनी नगर गढ़ा निवासी आशा पटेल ने बताया कि 6 साल पहले घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। हालात ऐसे थे कि बच्चों को आंगनबाड़ी में पढ़ाने भेजना बड़ी बात लगती थी। अब अपने बच्चों को इंग्लिश स्कूल में पढ़ा पा रही हूं। पाटन उजरोड़ निवासी मनीषा केवट ने बताया कि साल 2016 में वह और उसका पति मजदूरी करके अपना जीवन यापन करते थे। सिलाई का काम भैया से सीखा और आज खुद गांव के साथ पास के क्षेत्रों में प्रशिक्षण देकर कई महिलाओं को रोजगार देने लायक बन पाई हैं।

मैं मूलत: नरसिंहपुर का रहने वाला हूं। सालों से ग्रामीण महिलाओं की समस्याएं देखते आ रहे थे, वह अपने पति के साथ ही मजदूरी करके अपना और परिजन का जीवन यापन करती थीं। इसमें कई बार उनके घर में दो वक्त के खाने तक की परेशानी हो जाती थी। ग्रामीण महिलाओं में जागरुकता का भी अभाव होता है, जिसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों में कारखाना शुरू करने का निर्णय लिया। इसमें अधिकतर ग्रामीण महिलाओं को रोजगार दिया गया है। – अनुराग जैन, कारखाना संचालक

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