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चुनावी अग्निपरीक्षा 2024: कांग्रेस सहित क्षेत्रीय व परिवार की पार्टियों का भविष्य दांव पर

तय होगा क्षेत्रीय दल और जातिगत राजनीति बढ़ेगी या घटेगा इनका वजूद

मनीष दीक्षित-भोपाल। 18वीं लोकसभा के लिए हो रहा चुनाव भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस की अगुआई वाले ‘इंडिया’ गठबंधन के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इस चुनाव के नतीजे क्षेत्रीय दलों और उनके नेताओं का राजनीतिक भविष्य भी तय करेंगे। इस चुनाव में कई ऐसे नेता भी हैं, जिनका यह अंतिम चुनाव होगा। यह चुनाव राहुल गांधी के भविष्य के साथसाथ, ममता बनर्जी, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, एमके स्टालिन और रेवंत रेड्डी की क्षेत्रीय विचारधाराओं के राजनीतिक स्थायित्व के लिहाज से भी अहम होगा।

लोकसभा चुनाव के परिणाम तय करेंगे कि देश में क्षेत्रीय और जातिगत राजनीति बढ़ेगी या समाप्ति की और अग्रसर होगी। उधर, यूपी में अखिलेश और बिहार में तेजस्वी यादव के लिए यह इस बात का इम्तेहान होगा कि वे अपने पिता की विरासत के योग्य उत्तराधिकारी हैं, जिन्होंने अपने राज्यों पर हमेशा मजबूत पकड़ बनाए रखी और केंद्र की सत्ता के साथ-साथ प्रधानमंत्री के चयन में भी भूमिका निभाई।

यूपी, बिहार और बंगाल जैसे राज्यों के नतीजे महत्वपूर्ण, क्योंकि यहां फासला कम

लोकसभा का बहुमत उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, झारखंड, पंजाब और दिल्ली के नतीजों पर निर्भर करेगा। इन राज्यों की 348 सीटों में से एनडीए के पास 169 और इंडिया गठबंधन के पास 126 सीटें हैं। मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की 91 में से 88 सीटें भारतीय जनता पार्टी के पास हैं।

उत्तर प्रदेश (80 सीट): अखिलेश के सामने चुनौती

यहां अखिलेश यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। 2004 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने राज्य में 35 लोकसभा सीटें जीती थीं। 2012 में उप्र में सपा विधानसभा चुनाव जीती तो अखिलेश राज्य के मुखिया बने। लेकिन इसके बाद यूपी पर भगवा रंग चढ़ा तो समाजवादी साइकिल रμतार नहीं पकड़ पाई। पिछले लोकसभा चुनाव में अखिलेश ने मायावती से गठबंधन किया, लेकिन मात्र 5 सीट ही जीत सके। इस बार सपा और कांग्रेस साथ हैं और बसपा अलग। पीएम मोदी और उप्र के सीएम योगी आदित्यनाथ उप्र की सभी 80 सीटों पर जीत का दावा कर रहे हैं। ऐसे में अखिलेश पर अपनी पार्टी को संसद में दहाई के आंकड़े तक पहुंचाने की जवाबदारी बढ़ गई है।

प. बंगाल (42 सीट): भाजपा का टारगेट ममता की चिंता

यहां ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और मोदी की भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई है। पिछले लोस चुनाव में 18 और फिर विस में 77 सीटें जीतकर भाजपा ने ममता को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। भाजपा ने राज्य में 35 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। वहीं ममता ने भाजपा को राज्य से बाहर करने की प्रतिज्ञा ली है। उनका और उनकी पार्टी का अस्तित्व और लोकसभा की सीटों से जुड़ा हुआ है। यदि उनका प्रदर्शन ठीक नहीं रहता तो बंगाल में अगले विस चुनाव में भगवा झंडा लहराने का रास्ता साफ हो जाएगा।

बिहार (40 सीट): तेजस्वी के लिए कड़ी परीक्षा

यहां की 40 सीटों के परिणाम तय करेंगे कि 34 साल के पूर्व उपमुख्यमंत्री के तेज का सूर्य अस्त होगा या अपने पिता लालू यादव के योग्य उत्तराधिकारी के रूप में बिहार की राजनीति में पकड़ मजबूत करेंगे। वर्तमान में लोकसभा में राजद का एक भी सदस्य नहीं है। उसकी सहयोगी कांग्रेस 2019 में केवल एक सीट जीत पाई थी। शेष 39 सीटें भाजपा और जदयू की तेजस्वी यादव झोली में गई थीं।

महाराष्ट्र (48 सीट): शरद व उद्धव का भविष्य दांव पर

महाराष्ट्र में शरद पवार और उद्धव ठाकरे का भविष्य भी चुनाव परिणामों पर निर्भर होगा। ये दोनों ही बड़े खिलाड़ी हैं, जो दशकों से राज्य की राजनीति पर हावी हैं। लेकिन, हाल में दलबदल में दोनों ने अपने-अपने दल और चुनाव चिह्न खो दिए हैं। यह चुनाव तय करेगा कि वे महाराष्ट्र में अपने कॉडर और जादू को बरकरार रख सकते हैं या नहीं। 2019 में शरद पवार, जिनके पास अब नया चुनाव चिह्न तुरहा है, भाजपा-शिव सेना गठबंधन के विरुद्ध चार सीटें जीत सके थे। शिवसेना को 18 सीटें मिली थीं, जिनमें से अधिकतर सांसद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना में शामिल हो चुके हैं। पवार भी अपने लगभग सभी सांसद और विधायक खो चुके हैं।

तमिलनाडु (39 सीट): भाजपा के लिए स्टालिन का बयान हथियार

एमके स्टालिन और द्रविड़ पहचान को भाजपा की कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। राज्य की 39 सीटों में 23 द्रमुक और आठ कांग्रेस के पास हैं। भाजपा ने इस बार तमिलनाडु से 15-20 सीटों का लक्ष्य तय किया है। भाजपा जातिगत समीकरण तोड़ने और सनातन गौरव को पुनर्स्थापित करने के एजेंडे पर काम कर रही है। स्टालिन के बेटे उदयानिधि की उस टिप्पणी से वहां भाजपा को बड़ा हथियार मिल गया, जिसमें उदयानिधि ने हिंदू धर्म को डेंगू-मलेरिया बताते हुए इसे खत्म करने की बात कही थी।

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