
प्रीति जैन- सोसायटी में अब ऐसे किरदार सामने उभकर आ रहे हैं, जो कि दूसरों की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए प्रयासरत हैं। इनकी वजह से बच्चों से लेकर उनके अभिभावकों की सोच तक में बदलाव आ रहा है, जो कि पढ़ाई-लिखाई के लिए स्कूल भी नहीं पहुंचे थे। कुछ बच्चे ऐसे हैं, जो अपने परिवार की आमदनी में सहयोग करने के लिए हुनर के काम सीख रहे हैं। वहीं कुछ युवाओं ने पुलिस के सहयोग से ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगने वाले बच्चों को पढ़ाने व नशे से दूर कर सही रास्ते पर लाने का प्रयास किया है, लेकिन इनका कहना है कि यह राह इतनी आसान नहीं है लेकिन वे बदलाव लाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। वहीं कुछ लोग दिव्यांग युवाओं के रोजगार का इंतजाम करने में जुटे हैं।
खुद की मिसाल देकर दिला रहीं स्किल ट्रेनिंग
मैं देश की 100 महिला अचीवर में शामिल रह चुकी हूं और आस्ट्रोजेनेसिस इम्पर्फेक्टा नामक बीमारी से पीड़ित हूं। मैंने एमबीए की पढ़ाई पूरी की और पिछले 10 साल से दिव्यांग लोगों को क्राउड फंडिंग से डिसएबल्ड फ्रेंडली लैपटॉप व मोबाइल उपलब्ध करा रही हूं ताकि वे अपने काम कर सकें। साथ ही उन्हें कंप्यूटर, इंग्लिश व कम्युनिकेशन स्किल्स का प्रशिक्षण देकर रोजगार हासिल करने योग्य बना रही हूं। सीधे तौर पर अभी तक 1000 लोगों को स्वरोजगार व रोजगार दिला चुकी हूं। अपनी उद्दीप संस्था के जरिए आरोग्यता अभियान शुरू किया है, जिसके जरिए आर्थिक रूप से कमजोर दिव्यांगजनों को उनके अनुकूलित उपकरण उपलब्ध कराती हूं। – पूनम श्रोती, समाज सेविका
आर्मी पब्लिक स्कूल से सेवानिवृत्त होने के बाद मेरी मां मिथलेश सिंह ने शिक्षा की अलख जगाए रखने का अपना काम जारी रखा है। हम वॉलंटियर्स के साथ मिलकर सिंगारचोली के पास रहने वाले मजदूरों व घुमंतू समुदाय के बच्चों को पढ़ाने का काम करती हूं। यह बच्चे कभी स्कूल नहीं गए। पिछले एक साल में हम 20 बच्चों को रेगुलर अपनी क्लास में ला पाने में सफल हुए हैं, इसमें से कुछ बच्चों का तो नशा तक छुड़वाया है। – विनीता सिंह, सोशल वर्कर
हम सालभर भोपाल के पास बरेला गांव के बच्चों व युवाओं के साथ काम करते हैं, जिसमें उन्हें स्वरोजगार के लिए स्किल्स ट्रेनिंग दी जाती है। हाल में हमने बरेला गांव व नयापुरा की महिलाओं व बच्चों को कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया। इसमें से कई बच्चे अब बड़े होकर अपना रोजगार शुरू कर चुके हैं। ऐसे सैकड़ों बच्चे हैं, जो कि अपने परिवार की आमदनी में सहयोग करके अपने लिए पढ़ाई व रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा कर पा रहे हैं। – नीलम विजयवर्गीय, उद्यमी