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Dussehra 2023 : एक गांव ऐसा भी… जहां दशहरे पर करते हैं दशानन की पूजा, नहीं होता दहन; यहां बना है रावण बाबा का मंदिर

विदिशा। आज पूरा देश विजयादशमी पर जय श्रीराम के नारों से गूंजेगा और जगह-जगह रावण दहन होगा, लेकिन विदिशा जिले के एक गांव में इसका ठीक उलट नजारा दिखाई देगा। जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में दशहरे पर होगी रावण बाबा की भव्य आरती और भंडारा, जिसमें शामिल होने पहुंचेंगे जिले से हजारों लोग। तो चलिए जानते हैं इस जगह के बारे में…

गांव में हर गाड़ी के ऊपर रावण या जय लंकेश लिखा होता है।

“रावण” के कारण ही नाम पड़ा “रावन”

इस गांव का नाम रावण मंदिर के कारण ही रावन पड़ा। इस गांव के लोग शरीर पर जय लंकेश, जय रावण बाबा जैसे अक्षर गुदवाते हैं। यहां तक कि लोगों के वाहनों, मकानों और दुकानों पर भी जय लंकेश और जय रावण बाबा जैसे शब्द लिखे होते हैं। नटेरन तहसील से महज 6 किमी दूर स्थित रावन गांव में लोग रावण को अपना देव मानते हुए उसकी पूजा करते हैं। गांव के लोग खुद को रावण बाबा का वंशज बताते हैं। ऐसे में आने वाले लोगों को ये देखकर हैरानी होती है कि गांव के लोगों की रावण के प्रति इतनी भक्ति क्यों हैं ?

पौराणिक मान्यताओं को मानते हैं लोग

रावण बाबा मंदिर के पुजारी पंडित नरेश तिवारी के अनुसार, रावण बाबा के मंदिर से उत्तर दिशा में तीन किमी दूरी पर एक पहाड़ी है। मान्यता है कि इसी पहाड़ी पर प्राचीन काल में बुद्ध नामक एक राक्षस रहा करता था, जो रावण से युद्ध करने की इच्छा रखता था। जब भी वह युद्ध करने लंका पहुंचता, तो वहां की चकाचौंध देख मोहित हो जाता और उसका क्रोध शांत हो जाता था। एक दिन रावण ने उस राक्षस से पूछा तुम दरबार में आते हो और हर बार बिना कुछ बताए चले जाते हो, तब बुद्ध राक्षस ने बताया कि लंका का वैभव और आपको देखकर मेरा क्रोध शांत हो जाता है। तब रावण ने कहा कि तुम मेरी एक प्रतिमा बना लेना और उसी से युद्ध करना। तब से यह प्रतिमा बनी हुई है। बाद में लोगों ने उस प्रतिमा की महिमा को देखते हुए वहां रावण बाबा का मंदिर बना दिया।

मंदिर के सामने तालाब में है तलवार

रावण के मंदिर के सामने एक तालाब है। जिसके बीचोबीच एक पत्थर की बड़ी सी तलवार है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस तालाब की मिट्टी से लोगो के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। इस मिट्टी को लोग विदेश तक लेकर गए हैं। रावण बाबा के मंदिर में बकायदा रावण की आरती गाई जाती है और लोग रावण को जलाने की बात सुन भी नही सकते। दशहरे के दिन गांव में रावण दहन का शोक मनाया जाता है और रावण को मनाने विशेष पूजा की जाती है। इस गांव में प्रथम पूजा रावण बाबा की ही होती है।  यहां तक कि शादी जैसे शुभ कार्य पर भी रावण बाबा की पूज होने के बाद ही खाना पकना शुरू होता है।

(इनपुट – रामकुमार तिवारी) 

(नोट: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं।)

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