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भोपाल में संबलपुरी भाषा में पहली बार नाट्य प्रस्तुति, कहानी के भावों से कनेक्ट हुए दर्शक

जनजातीय संग्रहालय में एमपीएसडी के नवागत नाट्य समारोह के अंतिम दिन दो नाटकों का मंचन

तार आएबा शिकार के आएहे तेवेले किए जाने हजुर इंवा हथी है ताकत थिबा की नाई थिबा। येहीर लामी हजुर मते तुमर ई गराबंधा जीवन नु मुक्तेई दिअ….। ओडिशा की संबलपुरी भाषा के यह संवाद सोमवार को जनजातीय संग्रहालय के मंच से सुनाई दिए। हिंदी में इस संवाद का अर्थ है, ‘अगली बार जब शिकार खेलने आएंगे तब पता नहीं इन बाजुओं में यही ताकत होगी कि नहीं होगी, इसलिए मैं अपनी और अपने परिवार की गराबंधा जीवन से मुक्ति चाहता हूं’। मौका था, नवागत नाट्य समारोह के समापन अवसर का, जिसमें अंतिम दिन ‘गराबंधा’ नाटक का मंचन हुआ। संबलपुरी भाषा में ‘गरा’ का अर्थ, शिकार के लिए चारा और ‘बंधा’ का अर्थ, बंधन में बंधा हुआ। इस नाटक में दर्शक हिंदी ब्रोशर पढ़कर कहानी से जुड़े।

बूढ़े ने राजा से मांगी गराबंधा जीवन से मुक्ति

नाटक की कहानी कुछ इस तरह थी कि एक राजा, एक बूढ़ा और एक बाघ है। बाघ के शिकार के लिए राजा मचान पर बैठता है। बाघ को ललचाने के लिए बूढ़े को गरा बनाया गया, जो नीचे बैठता है। बाघ के आने पर बूढ़ा राजा को बंदूक चलाने के लिए इशारा करता है। राजा नशे में धुत्त होकर सो रहा होता है। बाघ बूढ़े को नहीं खाता और वह बूढ़े से कहता है कि वह उसे नहीं बल्कि राजा को खाने आया है। जब बाघ मचान के ऊपर चढ़ने लगता है तो बूढ़ा उसे कुल्हाड़ी से मार गिराता है। राजा को जब यह पता चलता है तो वह बूढ़े को पुरस्कार देना चाहता है। इस पर बूढ़ा व्यक्ति राजा से भविष्य में अपनी और अपने उत्तराधिकारियों की गराबंधा जीवन से मुक्ति की मांग रखता है।

ओडिशा से प्रस्तुति देने आए नौ कलाकार

संबलपुरी भाषा का यह नाटक लेखक प्रो. केशरंजन प्रधान ने लिखा और निर्देशन दयासागर धरूआ ने किया। टीम में 9 कलाकार ओडिशा से आए जिनमें से 3 आर्टिस्ट्स ने मंच पर अभिनय किया। वहीं 6 कलाकारों ने नेपथ्य में काम किया।

नाटक गराबंधा की कहानी दिल को छू गई। नाटक भले ही संबलपुरी भाषा में था, लेकिन इंसान का दर्द किसी भी भाषा में समझा जा सकता है। निर्देशक ने हिंदी में ब्रोशर दिए तो पूरी बात नाटक के साथ कनेक्ट होती गई। यह कहानी सच्ची घटना पर आधारित थी तो पहले के समाज में इंसान को शिकार के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा होगा। -हर्षिल सोनी, दर्शक

नाटक ‘घरवाली’ में दिखाई महिलाओं की सामाजिक दशा

समारोह में सबसे अंतिम प्रस्तुति लेखक इस्मत चुगताई के नाटक घरवाली की हुई, जिसका निर्देशन सपना मिश्रा ने किया। इसमें दिल्ली के चार कलाकारों ने मंच पर अभिनय किया। निर्देशक सपना मिश्रा ने बताया कि टीम के साथ लाइटिंग का काम संभालने वाले साथी को काम आने की वजह से वह नहीं आ सका। इसलिए लाइटिंग के लिए महाराष्ट्र से एक व्यक्ति को बुलाया गया, लेकिन उसे हिंदी नहीं आने पर को- आॅर्डिनेशन की समस्या हुई। पूरा नाटक नारी की सामाजिक दशा को दर्शाता व उस पर कटाक्ष करता दिखा। नाटक में 40 साल का मिर्जा अपने घर में काम करने वाली 18 साल की लाजो से शादी कर लेता है लेकिन फिर लाजो का प्रेम पड़ोसी के साथ हो जाता है। मिर्जा, लाजो को घर से निकाल देता है, लेकिन फिर लोगों की समझाइश के बाद उसे घर बुला लेता है लेकिन अब वो उससे घर का ज्यादा काम करता है।

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