प्रीति जैन- जबलपुर में पिछले महीने तिलवारा घाट पर दो लड़के पानी के पास रील बनाने के चक्कर में बह गए। वहीं महाराष्ट्र के तम्हिनी घाट पर सेना का पूर्व जवान स्टंट करते हुए पानी में बह गया। लोनावाला में पूरा परिवार घाट के बीच खड़ा था और अचानक बाढ़ आने से पांच लोग बह गए। ऐसी कई हादसे मानसून आते ही सुनने में आते हैं लेकिन फिर भी सैलानी सावधान नहीं होते और अनजान झरनों, नदी-नालों के बीच पहुंचकर स्टंट और रील के चक्कर में अपनी जान गंवाते हैं।
रील के चक्कर में रियल जोखिम लेने का यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। इस बारे में एडवेंचर टूरिज्म से जुड़े एक्सपर्ट बताते हैं कि बिना रैकी किए किसी भी अनजान जगह पर न जाएं और बरसाती नालों और झरनों के बीच जाने का जोखिम न लें। जब ऐसी जगहों पर जाएं अपने साथ गाइड या लोकल व्यक्ति को साथ लेकर जरूर जाएं तो चप्पे-चप्पे से वाकिफ हो।
हम अपने साथ जब ग्रुप को लेकर जाते हैं, तो सेफ्टी बॉन्ड भरवाते हैं। किसी को भी बरसाती नालों या झरनों में नहीं उतरने दिया जाता। हम जिस भी लोकेशन पर जाते हैं, पहले दो से तीन टीम लीडर वहां की रैकी करके आते हैं ताकि वहां की सही स्थिति पता हो। साथ में सेफ्टी उपकरण लेते हैं। हमारे साथ जाने वाले लोग ज्यादा से ज्यादा सिर्फ पानी में पैर डालकर बैठ सकते हैं। असल में खतरा यह होता है कि पत्थर पानी के बीच में नुकीले और काई से भरे होते हैं और जैसे ही तेज पानी का बहाव आता है, पैर वहां से उखड़ जाते हैं। स्वीमिंग आना ऐसी जगहों पर काम नहीं आता क्योंकि गहराई और बहाव को कोई अंदाजा नहीं होता। लोग बोर्ड पर लिखी चेतावनी को भी नजरअंदाज करते हैं और कई लोग दिखावे के चक्कर में अपनी जान गंवाते हैं। -मनोज जौहरी, नेशनल चैयरमैन, वाईएचएआई
ट्रैकिंग के दौरान बैग, रेन कोट, वॉटर बोतल, हंटर ट्रैकिंग शूज रखने की सलाह दी जाती है। सेल्फी व वीडियो पर फोकस करने की बजाए सेफ्टी पर फोकस करने को का जाता है और फोटोग्राफी हमारे टीम मेंबर करके देते हैं। ऐसा कई बार हुआ कि वॉटरफॉल में हमारी टीम व स्थानीय लोगों ने मिलकर घूमने आए दूसरे लोगों की जान बचाई। बेहतर होगा कि हर जगह की रैकी करके जाएं या किसी एडवेंचर ग्रुप के साथ ऐसी जगहों पर जाने की प्लानिंग करें। -अभिषेक शर्मा, ट्रेकिंग एक्सपर्ट