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भोपाल के आसपास घूम रहे बाघों का डीएनए टाइगर रिजर्व के बाघों से अलग

राज्य वन अनुसंधान केंद्र जबलपुर के वैज्ञानिकों द्वारा चार साल तक मप्र के बाघों पर की गई स्टडी में हुआ खुलासा

हर्षित चौरसिया जबलपुर। भोपाल के आबादी वाले इलाकों के आसपास और इससे लगे हुए जिलों में घूम रहे बाघों के डीएनए प्रदेश के टाइगर रिजर्व के बाघों से अलग हैं। यह खुलासा राज्य वन अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा की गई स्टडी रिपोर्ट में हुआ है। इसके लिए वन विभाग ने राज्य वन अनुसंधान केंद्र जबलपुर को स्टडी के लिए ‘स्टडी ऑन टाइगर प्रेजेंट एंड देयर डिस्पर्सल मूवमेंट्स इन रातापानी-ख्योनी लैंडस्कैप ऑफ विंध्यन रेंज’ प्रोजेक्ट स्वीकृत किया।

प्रोजेक्ट के मुख्य अन्वेषक एवं एसएफआरआई के बाघ संरक्षण एवं प्रबंधन इकाई के प्रभारी वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मंयक मकरंद वर्मा ने बताया कि इस प्रोजेक्ट में भोपाल के आसपास के वनमंडल सीहोर, अब्दुल्लागंज, रायसेन एवं देवास में बाघ की मौजूदगी का सर्वे किया गया। इस दौरान डीएनए एनॉलिसिस के लिए बाघ के मल के सैंपल एकत्र किए गए थे। इन्हें जांच के लिए एनसीबीएस बेंगलुरू को भेजा गया था। रिपोर्ट के अनुसार, यहां के बाघों की आबादी का डीएनए उसके आसपास के टाइगर रिजर्व सतपुड़ा, कान्हा, पेंच एवं बांधवगढ़ से नहीं मिलता है। इससे यह पता चलता है कि इनकी आबादी आइसोलेटेड हो गई है।

मानव-बाघ संघर्ष रोकने कॉरिडोर का प्रस्ताव

डॉ. वर्मा ने बताया स्टडी रिपोर्ट के आधार पर मानव-बाघ संघर्ष को कम करने के लिए कॉरिडोर बनाना जरूरी है। यह ओंकारेश्वर, ख्योनी (सेंचुरी), पन्ना रातापानी, नौरादेही, के लिए प्रस्तावित है। विंध्य लैंड स्कैप इन बाघों के लिए सबसे बेहतर हैबीटेट साबित हुआ है, लिहाजा यहां पर बाघों की संख्या अब तेजी से बढ़ रही है।

चार साल चली स्टडी, बाघों की संख्या 19

इस प्रोजेक्ट पर चार साल तक एसएफआरआई के वैज्ञानिकों की टीम ने काम किया। रिपोर्ट के मुताबिक 2018-19 की स्थिति में भोपाल व उसके आसपास के वनमंडल में बाघों की न्यूनतम संख्या 19 ज्ञात हुई है। वर्ष 2018 से 20 तक फील्ड पर सर्वे में फोटो से कई तरह से बाघों की मौजूदगी के प्रमाण जुटाए और 2020 से 2022 तक जुटाए गए तथ्यों का एनॉलिसिस कर रिपोर्ट तैयार की गई। स्टडी में पाया गया कि 24 गांव ऐसे हैं, जहां पर ये बाघ कुछ देर रुकते हैं।

हमारे यहां के वैज्ञानिकों ने वन विभाग स्टडी रिपोर्ट सौंप दी है। कॉरिडोर बनाने से न सिर्फ मानव- बाघ के बीच संघर्ष की घटनाओं में कमी आएगी बल्कि बाघों का विचरण क्षेत्र का विस्तार भी हो सकेगा। – रविन्द्र मणि त्रिपाठी, उपसंचालक, एसएफआरआई

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