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कूनो में चीतों की मौतों से सैलानी ठिठके, इन्वेस्टर्स ने भी हाथ खींचे

ग्वालियर। देश के गौरव माने जाने वाले चीता प्रोजेक्ट की रफ्तार पर ब्रेक लग गया है। चीतों की लगातार मौत से सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें हैं। आलम यह है कि रणथंभौर से कनेक्ट इस वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर को लेकर जो उम्मीदें थीं, वह ताश के पत्तों की तरह ढहती नजर आ रही हैं। चीतों को देखने सैलानी जमा नहीं हो सके तो प्रोजेक्ट की घोषणा के साथ श्योपुर और आसपास हुए ताबड़तोड़ इन्वेस्टमेंट का दम फूलता नजर आ रहा है। यहां आने के लिए ताज और ओबेरॉय जैसे बड़े होटल ग्रुप भी अब किनारा कर गए हैं।

दस माह में आठ मौतें

कूनो में पिछले साल 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर नामीबिया से लाये 12 चीतों को बाड़े में छोड़ा था। बाद में अफ्रीका से आठ और चीता लाये गये थे। इन चीतों में से जुलाई तक पांच वयस्क और तीन शावकों की असामयिक मौत हो चुकी है। तीन अभी कॉलर आईडी से गर्दन में घाव होने से घायल हैं और 11 को दोबारा बाड़े में लाया गया है।

कूनो के आसपास जमीन के दामों का गुब्बारा फूटा

कूनो अभयारण्य में चीता सफारी की शुरुआत की खबर के साथ यहां पर्यटन की दृष्टि से देश भर के व्यवसाइयों को आकर्षित किया। जहां कभी दो साल पहले दो से तीन लाख रुपए प्रति बीघा का रेट था, वह प्रोजेक्ट के शुरू होते-होते 15 लाख रुपए के पार हो गया था। यहां निजी जमीन कम होने के कारण रेट में ज्यादा बूम दिखाई दिया। लेकिन, अब इनके दाम नीचे गिर गए हैं।

केवल पालपुर के राजा का होटल हो रहा तैयार

चीता प्रोजेक्ट की शुरुआत के साथ ही यहां पर्यटन के बढ़ने की संभावना बढ़ गई थी। कई नेशनल और इंटरनेशनल होटल ग्रुप के आने की उम्मीद जताई जा रही थी। इनमें ताज और ओबरॉय होटल ग्रुप के जमीन तलाशने की भी चर्चा थी, जबकि कोई बड़ा ग्रुप यहां नहीं आया। यहां केवल एक एमपी टूरिज्म का होटल है और दूसरा स्थानीय पालपुर राजवंश के द्वारा बनाया जा रहा है।

ये हुईं बड़ी चूक

  • चीतों को मैदानी जंगल में रहने की आदत है। घने जंगलों में उसे शिकार करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। 􀂄 इलाके में चीतों के साथ तेंदुए और बाघों की मौजूदगी परेशानी का विषय है।
  • तेंदुआ घात लगाकर शिकार करने का आदी है और बारिश के बाद जंगल में चीता को तेंदुए से इलाके के वर्चस्व की लड़ाई में बचना टेढ़ी खीर साबित होगा।
  • सैलानियों को चीता दिखाने और लोकल शिकारियों से बचाने के लिए चीता मित्रों को तैयार किया गया। उन्हें चीता दिखाने के लिए विशेष ट्रेनिंग ही नहीं दी गई है।
  • प्रोजेक्ट को लीड कर रहे वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट एसएस झाला ने नामीबिया से चीतों को लाते वक्त ही अथॉरिटी को मेल किया था कि कुछ चीते वाइल्ड ना होकर कैप्टीविटी के हैं, जिनका सर्वाइवल रेट बहुत कम होगा।
  • चीता प्रोजेक्ट में शामिल वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट झाला के बाद सीसीएफ जसवीर सिंह चौहान दोनों को ही हटा दिया गया।

शुरुआत में जो माहौल था, वह अब नहीं है। चीतों की लगातार मौत से सैलानी नहीं आ रहे और कोई नया होटल या रिसॉर्ट नहीं बन रहा है। हम यहां 16 कमरों का होटल बना रहे हैं, भविष्य क्या है ये फिलहाल समझ नहीं आ रहा। – ऋषिराज सिंह पालपुर, व्यवसायी

मैं चीता प्रोजेक्ट की व्यवस्थाओं से बेहद आहत हूं। हमें चीता मित्र तो बनाया, लेकिन कोई व्यवस्था ही नही दीं। ऐसे में हमने तो जाना ही छोड़ दिया है। – रमेश सिकरवार, चीता मित्र (आत्मसमर्पित दस्यु)

(इनपुट – अर्पण राऊत)

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