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Sitaram Yechury के बारे में जो सब जानना चाहते हैं, पढ़ें पूरी खबर

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी का 72 साल की उम्र में निधन हो गया। येचुरी देश में लेफ्ट का जाना माना चेहरा थे। उनकी गिनती भारत के विचारवान नेताओं में होती थी। वह हमेशा एक होनहार छात्र रहे, जो पीएचडी कर अपने नाम के आगे डॉक्टर लिखने का सपना रखते थे। लेकिन, राजनीति के चक्कर में ऐसा उलझे कि डॉक्टर बनने का सपना, सिर्फ सपना रह गया। सीताराम येचुरी ने जेएनयू में पढ़ाई के दौरान 1974 में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) से जुड़कर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की।

12वीं में पूरे देश में किया था टॉप

सीताराम येचुरी एक होनहार छात्र थे। 1969 में तेलंगाना आंदोलन में दिल्ली पहुंचकर उन्होंने 12वीं के लिए प्रेसिडेंट्स एस्टेट स्कूल में एडमिशन लिया और CBSE हायर सेकंडरी परीक्षा में पूरे देश में पहला रैंक (AIR-1) हासिल किया। इसके बाद उन्होंने दिल्ली के ही सेंट स्टीफंस कॉलेज से इकोनॉमिक्स में फर्स्ट रैंक से बीए (ऑनर्स) और फिर जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) से इकोनॉमिक्स में एमए किया। सीताराम ने डॉक्टर बनने का सपना लिए JNU से ही पीएचडी करने का फैसला किया, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।

अधूरा रह गया डॉक्टर बनने का सपना

पीएचडी करने के बाद स्कॉलर अपने नाम के आगे ‘डॉक्टर’ लिखने को स्वतंत्र होता है। हमारे देश में पीएचडी करने के लिए लंबी प्रतिस्पर्धा रहती है। किसी सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पीएचडी के लिए एनरोल होना और उसके बाद भी उसे पूरा कर अपने नाम के आगे ‘डॉक्टर’ लिख पाना चुनौती भरा होता है। ऐसे में बहुत से छात्रों का यह सपना अधूरा भी रह जाता है।

सीताराम येचुरी की भी गिनती ऐसे ही छात्रों में की जाती है। जेएनयू से इकोनॉमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने JNU से ही अर्थशास्त्र में पीएचडी करने के लिए एडमिशन लिया। लेकिन, 1975 में आपातकाल के दौरान उनकी गिरफ्तारी हो गई। इस वजह से उनकी पीएचडी बीच में ही छूट गई और उनका ‘डॉक्टर’ बनने का सपना अधूरा रह गया।

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