जबलपुर। सिविक सेन्टर में बने कैफेटेरिया का विवाद एक बार फिर से हाईकोर्ट में पहुंच गया है। पिछले लीज धारक ने एक पुनर्विचार याचिका दायर करके कोर्ट से प्रार्थना की है कि उसके 63 करोड़ 26 लाख रुपए से अधिक के दावे को खारिज करने संबंधी पिछले फैसले पर फिर से विचार किया जाए। इस मामले पर जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच द्वारा सुनवाई की जाएगी।
क्या है पूरा मामला?
चंदर डेंगरा की ओर से दायर इस पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि उसे वर्ष 1989 से 2007 तक की अवधि के लिए कैफेटेरियाकी लीज लाईसेन्स मिला था। राज्य सरकार द्वारा 28 अप्रैल 2006 को लिए गए नीतिगत निर्णय के तहत 3 जुलाई 2010 को नया लीज अनुबंध किया गया। इसके मुताबिक आवेदक को 2 करोड़ 76 लाख 97 हजार 149 रुपए के प्रीमियम पर 1 जून 2010 से 31 मई 2040 तक का पट्टा विलेख दिया गया। इस आधार पर आवेदक ने पुराना निर्माण तोड़कर नई बिल्डिंग का निर्माण शुरु किया। इसी बीच एक जनहित याचिका पर हाईकोर्ट ने नए निर्माण पर रोक लगा दी। 26 सितंबर 2012 को हाईकोर्ट ने 3 जुलाई 2010 का अनुबंध निरस्त करके नई निविदा बुलाकर आवेदक द्वारा खर्च की गई राशि लौटाने के आदेश दिए थे। इसके बाद आवेदक ने करीब 72 करोड़ रुपए का दावा जेडीए के सामने 6 मार्च 2013 को पेश किया। हाईकोर्ट के आदेश पर बुलाई गई नए टेंडर में आवेदक की बोली सर्वाधिक होने के बाद भी उसकी निविदा अस्वीकार करने के खिलाफ पुन: एक मामला दायर किया गया।
हाईकोर्ट ने 26 सितंबर 2012 को संज्ञान लेकर जनहित याचिका दर्ज की और फिर 22 मार्च 2017 को विवादित भूमि जेडीए किसी को भी लीज पर नहीं देगा और उसका इस्तेमाल वह (जेडीए) खुद करेगा। इस बीच आवेदक अपने दावे को लेकर लगातार जेडीए से पत्राचार करता रहा। आवेदक का दावा था कि उसका दावा अब 63 करोड़ रुपए से अधिक पहुंच चुका है और उक्त राशि लौटाने के संबंध में कोई कार्रवाई न होने पर एक याचिका वर्ष 2023 में दायर की गई। हाईकोर्ट ने 4 सितंबर 2024 को उक्त याचिका खारिज करके कहा था कि याचिका दायर करने में काफी विलंब हुआ है, लिहाजा इस पर सुनवाई नहीं की जा सकती।
इसी फैसले पर पुनर्विचार करने यह याचिका दायर करके आवेदक ने कहा है कि जेडीए ने उसका दावा 20 सितंबर 2023 को खारिज किया था, इसलिए लिमिटेशन का मुद्दा उसकी याचिका के आड़े नहीं आएगा। इस आधार पर 4 सितंबर 2024 के आदेश में पुनर्विचार किए जाने की प्रार्थना की गई है।
हाईकोर्ट में पहली बार हुई थी नीलामी
हाईकोर्ट में 16 नवम्बर 2015 का दिन ऐतिहासिक था, क्योंकि पहली बार किसी संपत्ति की नीलामी की प्रक्रिया कोर्ट में हुई थी। कैफेटेरिया की जमीन को लेकर हुई इस नीलामी में चंदर डेंगरा ने 11 करोड़ 11 लाख 11 हजार 111 रुपए की सर्वाधिक बोली लगाई थी। किसी और दावेदार के आगे न आने पर कोर्ट ने उक्त राशि 30 दिनों में जमा करने के आदेश दिए थे। बाद में लगाई गई बोली की राशि को घटाने के संबंध में डेंगरा की ओर से दायर अर्जी दिसंबर 2015 में खारिज करके हाईकोर्ट ने जमीन खाली करने के आदेश दिए थे।