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चार साल के अंतराल में कांग्रेस पर भाजपा की दूसरी बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक!

सिंधिया के बाद अब नाथ?

मनीष दीक्षित। मध्य प्रदेश, शायद पहला ऐसा राज्य होगा, जहां भाजपा ने लगभग 4 वर्ष के अंतराल में कांग्रेस पर दूसरी बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक की है। पहली बार 2020 में ‘ऑपरेशन कमल’ में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ही कमलनाथ की सरकार चली गई थी। अब खुद कमलनाथ अपने समर्थकों के साथ ‘कमल’ का हाथ थामने की तैयारी में हैं। पहले दौर में ग्वालियर चंबल इलाके में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा था और अब महाकोशल में भी जोर का झटका लगता दिखाई पड़ रहा है।

दरअसल, ‘ऑपरेशन कमल’ का उद्देश्य तो यही होता है कि दूसरे दल की सरकार गिराकर अपनी बना ली जाए। मगर इस बार जो होने वाला है, वह कुछ अलग हटकर है। मध्य प्रदेश में भाजपा की ही सरकार है, बावजूद पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता को भाजपा में शामिल करवाया जा रहा है। कई दिनों से कमलनाथ और उनके सांसद बेटे नकुलनाथ के कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होने की अटकलें लगाई जाती रही हैं।

अब ये सच होता दिख रहा है। ऐसा होता है तो लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए यह एक बड़ा झटका है। कमलनाथ का ‘कमल’ के साथ हो जाना मामूली बात नहीं है। संजय गांधी के सखा, इंदिरा गांधी के तीसरे पुत्र द्वारा पाला बदलना वाकई आश्चर्य करने वाला है। लगता है अपने व्यावसायिक हितों को बचाये रखने और उम्र के इस पड़ाव पर किसी विवाद से बचने के लिए ही उन्होंने यह कदम उठाया होगा। चुनाव हारने के बाद पार्टी हाईकमान के सामने उनकी स्थिति पहले जैसी नहीं रही थी।

चार साल के अंतराल पर कांग्रेस

कमलनाथ महाकोशल इलाके से आते हैं। उनकी एक पहचान है और विरासत भी। कह सकते हैं कि उनके साथ कई और विधायक बीजेपी में जा सकते हैं। कुछ को कोई पद मिल सकता है और अशोक चव्हाण की तरह उन्हें भी बीजेपी राज्य सभा में भेज सकती है। या उनके लिए कोई नई भूमिका तय होगी। लेकिन इसके बाद क्या होगा? महाकोशल के जिस इलाके से वे आते हैं, उनके खिलाफ राजनीति करने वाले बीजेपी के पुराने नेता क्या उनको छोड़ देंगे? राजनीति तो समय के मुताबिक ही चलती है और हर समय कोई विजय पताका नहीं लहरा सकता।

रही बात ‘आॉपरेशन कमल की’ तो कांग्रेस को प्रदेश में तोड़ा तो नहीं जा सकता, मगर बड़े नेताओं को झपटा जरूर जा सकता है। वही काम बीजेपी लगातार कर रही है। चुनाव से पहले भले ही कांग्रेस को बड़ा झटका बीजेपी ने दिया है, लेकिन कांग्रेस को इससे क्या फर्क पड़ेगा यह देखने की बात होगी। कांग्रेस तो बार-बार टूटती ही रही है। उसकी टूट से ही तो आज इतने दल देश में बने हुए हैं। कमलनाथ हाईकमान के विश्वासपात्र थे। खड़गे और राहुल को भी लग रहा था कि उनके नेतृत्व में प्रदेश में पार्टी की जीत होगी, लेकिन उनकी सोच गलत निकली। सिंधिया पहले निकले थे और अब दल बल के साथ कमलनाथ तैयारी में हैं। कल कोई और भी निकल सकता है, क्योंकि प्रदेश और देश में कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। अब देखना रोचक होगा कि क्या नाथ के जाने से कांग्रेस में नया संचार होगा या फिर हालात और बिगड़ेंगे। कांग्रेस को प्रदेश में उन जैसा फंड जुटाने वाला मिलना मुश्किल है। कमलनाथ के पास 45 वर्ष का लंबा राजनीतिक अनुभव है। वह छिंदवाड़ा से 9 बार लोस सदस्य चुने जा चुके हैं।

दरअसल इस पूरी कवायद के पीछे भाजपा का बड़ा माइंड गेम भी काम कर रहा है। उसकी प्लानिंग यह भी है कि यदि चुनावी जंग के पहले विरोधी पक्ष की मैदानी सेना में ही भगदड़ बना दी जाए तो आधी जीत तो वहीं तय हो जाएगी। इसके बाद सबसे अहम मुद्दा परसेप्शन का भी है। रणछोड़ने वालों की पार्टी का तमगा लगते ही पब्लिक के बीच विपक्ष की साख धूल-धूसरित हो जाएगी। जब चारों तरफ से सिचुएशन ऐसी बन जाएगी तो फिर कांग्रेस कार्यकर्ता ही क्या उम्मीदवारों का मनोबल भी कहां तक टिक पाएगा। और फिर यह तो जग-जाहिर है कि मन के हारे ही हार है..।

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