नई दिल्ली। भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा जिले के नगला चंद्रभान गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय और माता का नाम रामप्यारी था। दीनदयाल 3 वर्ष के भी नहीं हुए थे, कि उनके पिता का निधन हो गया, 7 वर्ष की उम्र में उनकी मां रामप्यारी भी चल बसीं। विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी की और इसी दौरान 1937 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े। वह आजीवन संघ के प्रचारक रहे।
21 अक्टूबर 1951 को डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना हुई। 1952 में इसका प्रथम अधिवेशन कानपुर में हुआ और दीनदयाल उपाध्याय जी इस दल के महामंत्री बने तथा 1967 तक वह भारतीय जनसंघ के महामंत्री रहे। 10 फरवरी 1968 को दीनदयाल लखनऊ से पटना जाने के लिए सियालदाह एक्सप्रेस में बैठे थे। ट्रेन रात करीब 2 बजे बिहार के मुगलसराय स्टेशन पहुंची, लेकिन उसमें दीनदयाल उपाध्याय नहीं थे। स्टेशन के पास में ही ट्रैक पर उनकी लाश पड़ी मिली थी। आज भी उनकी मौत का कारण रहस्य बना हुआ है।
भाजपा के पितृपुरुष कहलाते हैं
उपाध्याय जी का कहना था कि अगर हम एकता चाहते हैं, तो हमें भारतीय राष्ट्रवाद को समझना होगा, जो हिंदू राष्ट्रवाद है और भारतीय संस्कृति हिन्दू संस्कृति है। भारत की जड़ों से जुड़ी राजनीति, अर्थनीति और समाज नीति ही देश के भाग्य को बदलने का सामर्थ्य रखती है। कोई भी देश अपनी जड़ों से कटकर विकास नहीं कर सका है। 1967 में कालीकट अधिवेशन में वह भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए और मात्र 43 दिन बाद ही 10/11 फरवरी 1968 की रात्रि में मुगलसराय स्टेशन पर उनकी हत्या कर दी गई। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अपनी परंपराओं और जुड़े रहने के बावजूद समाज और राष्ट्र के लिए उपयोगी नवीन विचारों का सदैव स्वागत किया। उन्हें भाजपा के पितृपुरुष भी कहा जाता है।
समय के पाबंद थे दीनदयाल उपाध्याय
किसान सम्मेलन में शामिल होने के लिए एक बार उपाध्याय जी जीप में बैठकर जा रहे थे। कार्यक्रम के मुताबिक सुबह 9 बजे जुलूस निकलने वाला था। बड़ी संख्या में किसान इसके लिए इकट्ठा हुए थे। पर रास्ते में उनकी जीप खराब हो गई। जब उपाध्याय जी को पता चला कि जीप ठीक होने में समय लगेगा, वह बेचैन होने लगे। दीनदयाल जी समय के पाबंद थे। ऐसे में उन्होंने ड्राइवर से कहा कि तुम जीप सही कर लाते रहना मैं तो चला। और इतना कहकर वह पैदल ही कार्यक्रम स्थल के लिए निकल पड़े। 5-6 मील पैदल चलने के बाद उन्हें कार्यकर्ताओं की एक जीप मिली, जिसमें बैठकर वह समय पर कार्यक्रम स्थल पहुंच गए।
पैर में घाव होने के बाद भी चुप बैठे
ऐसा ही एक और किस्सा है, एक बार दीनदयाल जी एक कार्यकर्ता की बाइक से कही जा रहे थे। खराब और संकरा रास्ता कंटीली झाड़ियों से भरा था। एक झाड़ी से उनके पैर में घाव हो गया, और खून बहने लगा। पर वह चुपचाप बाइक पर बैठे रहे। गंतव्य तक पहुंचने के बाद जब वह लंगड़ाते हुए आगे बढ़े तो वह मौजूद कार्यकर्ताओं को उनकी चोट के बारे में पता चला। इस पर बाइक वाला कार्यकर्ता बोला- पंडित जी, आपके पांव में इतना गहरा घाव हो गया था तो आपने बताया क्यों नहीं, रास्ते में कहीं मरहम-पट्टी करवा लेते। दीनदयाल बोले- यदि ऐसा करते तो नियत समय में कैसे पहुंचते।