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विंध्य में बदले सियासी समीकरण से भाजपा के सामने सीटें बचाने की चुनौती

BJP faces challenge to save seats due to changed political equation in Vindhya

भोपाल। मध्यप्रदेश में इस बार विंध्य अंचल की 30 विधानसभा सीटों पर बदले हुए सियासी और जातीय समीकरण के चलते भाजपा के सामने अपनी मौजूदा स्थिति को बरकरार रखने की चुनौती बढ़ गई है। भाजपा को पिछले चुनाव (2018) में क्षेत्र की 24 सीटों पर सफलता मिली थी। लेकिन इस बार उसे एक तिहाई से अधिक सीटों को बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। क्षेत्र की कई हाई-प्रोफाइल सीटों पर बसपा,सपा और आप के प्रत्याशी और भाजपा-कांग्रेस के बागियों ने कई दिग्गज नेताओं को उलझन में डाल दिया है। सतना सांसद गणेश सिंह और सीधी सांसद रीति पाठक सहित विस अध्यक्ष गिरीश गौतम, विधायक दिव्यराज सिंह, नागेंद्र सिंह, नीलांशु चतुर्वेदी, पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह गहरवार, अभय मिश्रा और यादवेंद्र सिंह जैसे दिग्गज नेताओं की सियासी साख दांव पर है। रीवा, सतना, सीधी और सिंगरौली जिले के गांवों में लाड़ली बहना योजना की ताजा किस्त की चर्चा जोरों पर है।

चित्रकूट: बागियों से बना चतुष्कोणीय संघर्ष

चित्रकूट में भाजपा के सुरेंद्र सिंह गहरवार और कांग्रेस विधायक नीलांशु चतुर्वेदी के अलावा बसपा के सुभाष शर्मा ढोली और सपा के संजय सिंह ने मुकाबला चतुष्कोणीय बना दिया है। ये भाजपा-कांग्रेस के बागी हैं। नागौद सीट पर कांग्रेस के बागी और बसपा प्रत्याशी यादवेंद्र सिंह ने भाजपा के नागेंद्र सिंह और कांग्रेस की रश्मि सिंह पटेल के मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। गुढ़ सीट पर भाजपा के नागेंद्र सिंह को कांग्रेस के कपिध्वज सिंह चुनौती दे रहे हैं, आप प्रत्याशी प्रखर सिंह भी जनाधार में सेंध लगाने में जुटे हैं।

देवतालाब: चाचा-भतीजे के बीच सेंगर का पेंच

देवतालाब में भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम को उम्मीदवारी सौंपी है जबकि कांग्रेस की तरफ से उनके ही भतीजे पद्मेश गौतम ताल ठोक रहे हैं। यहां सपा प्रत्याशी जयवीर सिंह सेंगर ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। सिंगरौली सीट पर भाजपा के बागी चंद्रप्रताप विश्वकर्मा ने बसपा के कंधे पर सवार होकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। कांग्रेस से यहां पूर्व महापौर रेनू शाह और भाजपा से रामनिवास शाह मैदान में हैं। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल दो बार क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं।

सिरमौर: मुश्किल डगर

सिरमौर सीट पर रीवा राजशघराने के दिव्यराज सिंह भी त्रिकोणीय संघर्ष में फंसे हैं। यहां कांग्रेस पूर्व विधायक रामगरीब कौल है जबकि बसपा के पूर्व पुलिस अधिकारी बीडी पांडे ने सियासी और जातीय समीकरण बिगाड़ दिए हैं। उधर सेमरिया में भाजपा के केपी त्रिपाठी के सामने कांग्रेस ने कई बार दल बदल चुके अभय मिश्रा को उतारा है।

हितग्राहियों’ का नया समाज!

पारंपरिक जातियों के अलावा इस चुनाव में हर विधानसभा सीट पर मतदाताओंक ा नया ‘हितग्राही’ समाज उभर कर आया है। भाजपा के साथ अन्य दलों के प्रत्याशी भी इस वर्ग को लुभाने में जुटे हैं। हर सीट पर इनकी संख्या हजारों में है।

एक्सपर्ट कमेंट

रीवा के वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल का कहना है कि विंध्य में इस बार चुनाव में नए समीकरण बनेंगे। भाजपा के सामने 2018 जैसी स्थिति नहीं है। बागी दोनों ही दलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। मतदाता भी भ्रम की स्थिति में नहीं हैं।

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