
भोपाल। प्रदेश के कई अंचलों में भुजरियां या कजलियां का पर्व रक्षाबंधन के बाद आने वाली दूज के दिन मनाया जाता है। प्रदेश के हर अंचल में इस त्यौहार पर अलग-अलग प्रथाएं निभाई जाती हैं, लेकिन आज बात कर रहे हैं राजधानी भोपाल की उस परंपरा की जो नवाबी दौर से चली आ रही है। भोपाल में राखी की दूज पर भुजरियों को कुओं, ताल-तलैयों पर ले जाकर विसर्जित किया जाता है। इस दौरान लोग भुजरियों का आदान-प्रदान कर गले मिलते हैं। इस दिन बीते हुए साल में हुए अपराधों की क्षमा मांगी जाती है।
भोपाल को सूखे से बचाने के लिए शुरू हुई थी परंपरा
भोपाल में रक्षाबंधन की दूज पर किन्नर भुजरियां जुलूस निकालते हैं। कुछ लोग इसकी शुरुआत राजा भोज के दौर से और कुछ इसकी शुरुआत नवाब शासन काल के दौरान मानते हैं। इस परंपरा को लेकर एक कहानी यह है कि भोपाल में एक बार भीषण सूखा और अकाल पड़ा। इससे निजात पाने की खातिर राजा भोज ने ज्योतिषियों से सलाह मांगी। उन्हें सलाह मिली कि यदि किन्नर भुजरियां पर्व मनाएंगे तो इस विपत्ति से निजात मिल जाएगी। राजा भोज के आग्रह पर किन्नरों ने मंदिर-मस्जिदों में जाकर बारिश के लिए प्रार्थना और दुआ की साथ ही भुजरियां पर्व मनाया। किन्नरों के प्रयास रंग लाए और भरपूर बारिश हुई। तब से भोपाल में भुजरियां पर्व की नींव रखी गई।
इंडो-वेस्टर्न कॉम्बिनेशन में दिखते हैं किन्नर
भोपाल में निकलने वाले किन्नरों के इस जुलूस का लोगों को साल इंतजार रहता है। पुराने शहर के मंगलवारा से शुरू होने वाले इस जुलूस के दौरान किन्नर सारंगी और ढोलक की थाप पर जमकर नाचते गाते और झूमते हैं। इनकी टोलियों को देखने के लिए हजारों की तादाद में भोपाल के साथ ही आस-पास के इलाकों के बाशिंदे जमा होते हैं। किन्नरों के जुलूस में ट्रेडिशनल और मार्डन फैशन का अलग ही कॉम्बिनेशन देखने को मिलता है। कई किन्नर जहां लहंगा और साड़ी के साथ हैवी ज्लेवरी पहने दिखाई देते हैं, वहीं कुछ वेस्टर्न और बोल्ड ड्रेसेज में दिखाई देते हैं। इस दौरान किन्नर हॉलीवुड से लेकर बॉलीवुड तक के रंगों में नजर आते हैं।
लोगों की मान्यता है कि यदि उन्हें किन्नरों ने सच्चे मन से आशीर्वाद दे दिया तो जीवन में कभी विपदा नहीं आती, यही वजह है कि लोग अपने बच्चों को खासतौर पर किन्नरों से आशीर्वाद दिलाने ले के जाते हैं। इस दौरान किन्नर अपने सिर पर भुजरियां लेकर चलते हैं। कई बार इस जुलूस में कुछ मनचलों द्वारा विध्न पहुंचाने की कोशिश भी होती है, लेकिन ऐसे लोगों को किन्नर खुद ही उन्हें सबक सिखा देते हैं। यही वजह है इस जुलूस के लिए तैनात पुलिस बल का काम केवल इसे गंतव्य तक पहुंचाने और ट्रेफिक व्यवस्था संभालने का ही होता है। इस जुलूस में भोपाल के अलावा राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात से भी किन्नर शामिल होने पहुंचते हैं।

यूं मनाते हैं भुजरियां का पर्व
भुजरियां की तैयारी रक्षाबंधन से एक हफ्ताह पहले शुरू होती है। इसके लिए मिट्टी के किसी गमले या मटकेनुमा आकार वाले पात्र में गेहूं के दाने अंकुरित होने के लिए रख दिए जाते हैं। इन्हें समय समय पर पानी से सींचतें है। महज सात-आठ दिनों के भीतर गेहूं की ये बालियां बड़ी हो जाती हैं, इन्हें भुजरियां के अलावा कजलियां भी कहते हैं। इसे शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसे भगवान को अर्पित करने के बाद इसका आदान प्रदान करते हैं, बधाई दी जाती हैं और लोकगीत गाए जाते हैं।
#भोपाल : #किन्नरों ने निकाला #भुजरिया_जुलूस, नवाबों के काल से चली आ रही है परंपरा। मंगलवारा, बुधवारा, तलैया, चौक बाजार, पीरगेट, रॉयल मार्केट होते हुए लालघाटी पहुंचा जुलूस, यहां हुआ भुजरियों का विर्सजन, इस दौरान जमकर नृत्य करते हैं किन्नर, रक्षाबंधन के बाद निकलने वाले जुलूस को… pic.twitter.com/kBNgJ7EBX8
— Peoples Samachar (@psamachar1) September 1, 2023