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दुनिया छोड़ चला गया युवा गजलकार अभय शुक्ला, एक महीने लड़ी जिंदगी से जंग, सड़क हादसे में हुई थी ब्रेन इंजरी

भोपाल। 23 साल के युवा गज़लकार अभय शुक्ला ने आखिरकार इस दुनिया को अलविदा कह दिया। रविवार देर रात उन्होंने नर्मदा हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। 6 मई को अभय का एक ख़तरनाक रोड एक्सीडेंट हुआ, जिसमें उन्हें गंभीर ब्रेन इंजरी हुई थी। इस हादसे के बाद से ही वह अस्पताल में भर्ती थे। सोमवार को भदभदा विश्राम घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। भोपाल के साहित्यिक जगत में अभय शुक्ला को असीम संभावनाओं से भरपूर एक उभरता सितारा माना जा रहा था। अभय की कई गजलें अमेरिका और यूरोप की पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हो चुकी थीं। अभय का ये शेर उनके जाने के बाद हमेशा लोगों की जुबान पर रहेगा।

“उतरना पार था मुश्किल हमारा,
ज़रा नाराज़ था साहिल हमारा।
हमारी मां के गहनों से बना है,
चमकता क्यूं  न मुस्तक़बिल हमारा।“

इकलौती संतान थे अभय

अभय अपने माता पिता की इकलौती संतान थे। उनके गंभीर रूप से घायल होने के बाद उन्हें बचाने के लिए एक माह से भोपाल की साहित्यिक बिरादरी क्राउड फंडिंग के जरिए इलाज के लिए धनराशि पैसा जुटा रही थीं। अभय के इलाज के लिए 15 लाख से अधिक की रकम का इंतजाम हो भी गया था, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। वे अपनी शायरी के जरिए मंच पर अलग ही समा बांध देते थे। अभय के निधन पर साहित्यिक जगत से जुड़ी कई हस्तियों ने गहरा दुख व्यक्त किया है। अभय की इस गजल के साथ उन्हें श्रद्धांजलि…

मैं जैसा हूं मुझे रहने दो
 मुझ को ये होने में जमाने लग गए हैं
कई बचपन गरीबी खा चुकी है
कई बच्चे कमाने लग गए हैं…
जनाजे देख के औरों के घर के,
 मुझे कुछ डर सताने लग गए हैं…।
(अभय की यह गजल सेंट पीटर्सबर्ग, अमेरिका से प्रकाशित पत्रिका सेतु में छपी थी।)

 

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