भोपालमध्य प्रदेश

बेहतर पहल : ऑटिस्टिक लोगों के लिए मध्य भारत का पहला स्पेशलाइज्ड हॉस्टल भोपाल में, डे केयर सेंटर भी होगा शुरू

ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों की देखभाल संबंधी मुश्किलों को देखते हुए 5 पैरेंट्स ने इसी साल अप्रैल से आनंदम की शुरुआत की है। 12 की क्षमता वाले इस हॉस्टल में अभी मप्र के अलावा राजस्थान, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के ऑटिज्म से पीड़ित 8 बच्चे रह रहे हैं।

पल्लवी वाघेला, भोपाल। राजधानी से करीब 28 किमी दूर भोपाल-बैरसिया मार्ग पर रतुआ गांव में आनंदम हॉस्टल संभवत: मध्य भारत का इकलौता ऐसा हॉस्टल है, जो ऑटिस्टिक पर्सन के लिए उनकी जरूरतों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया है। ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों की देखभाल संबंधी मुश्किलों को देखते हुए 5 पैरेंट्स ने इसी साल अप्रैल से आनंदम की शुरुआत की है। 12 की क्षमता वाले इस हॉस्टल में अभी मप्र के अलावा राजस्थान, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के ऑटिज्म से पीड़ित 8 बच्चे रह रहे हैं। इनके साथ थैरेपिस्ट, स्पेशल टीचर और केयर गिवर रह रहे हैं। कैंपस में स्विमिंग पूल, रेन डांस, पूल टेबल, क्रिकेट नेट, बैडमिंटन नेट, साइकिल ट्रैक जैसी सुविधाएं हैं।

पैरेंट्स भी रह सकेंगे

12 बच्चों के हॉस्टल को जल्द ही 50 बच्चों तक बढ़ाने की तैयारी है। जो पैरेंट्स अपने बच्चों के करीब रहना चाहते हैं, उनके लिए परिसर में कुछ प्लॉट निकाले गए हैं। पैरेंटस इन्हें खरीदकर सोसायटी के नियमानुसार बनवा सकते हैं। प्लॉट के रेट कलेक्टर गाइडलाइन के हिसाब से हैं। यदि
पैरेंट्स को वृद्धावस्था में देखभाल की जरूरत है तो सोसायटी न्यूनतम शुल्क पर उनकी हर जरूरत का खयाल रखेगी।

सभी पैरेंट्स अलग फील्ड से

आनंदम से जुड़े 5 पैरेंट्स अलग- अलग क्षेत्रों से हैं। दो मेडिकल फील्ड से हैं, एक इंजीनियर, एक लेक्चरर और एक ऑटिस्टिक बच्चे की बुआ गृहणी हैं। वह राजस्थान से इस ग्रुप से जुड़ी हैं। स्पेशल स्कूल में बच्चों की शिक्षा के दौरान ये एक-दूसरे के संपर्क में आए।

पॉजिटिव माहौल बनाना है

हम लंबे समय से यह प्लान कर रहे थे। कोरोना में महसूस हुआ कि जिंदगी में बहुत ही अनिश्चितता है। हमारे बाद बच्चों का क्या होगा, यह सोचकर ही इसकी स्थापना की गई।

डॉ. एसके श्रीवास्तव, अध्यक्ष, ऑटिज्म मित्र सोसायटी

खुश हूं कि बेटा सुरक्षित हाथों में है

साल 2019 में पति की मृत्यु के बाद मेरी जिंदगी बदल गई। पति ही ऑटिस्टिक बेटे का हर काम करते थे। अब बेटा 4 माह से आनंदम में है।
मुझे लगता है कि मुझसे बेहतर तरीके से वहां उसकी देखभाल हो रही है। खुश हूं कि बेटा सुरक्षित हाथों में है।

डॉ. हेमलता डहारे, स्पेशल पैरेंट

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