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भोपाल लोस: जीतने वाला नहीं बन पाया सिकंदर, हारने वालों की रही बल्ले-बल्ले

हारने वाले पचौरी को केंद्र,पीसी को राज्य में मिला था मंत्री पद

राजीव सोनी- भोपाल। मध्यप्रदेश में चार दशक से भाजपा के गढ़ में तब्दील हो चुकी भोपाल लोकसभा सीट पर कांग्रेस 1984 के बाद से विजय पताका फहराने तरस रही है। इस सीट पर दिलचस्प संयोग यह है कि यहां से जीतने वाले नेताओं का सियासत में अपेक्षित उत्थान नहीं हो पाया। एकाध अपवाद छोड़ दें तो ज्यादातर विजेताओं के हिस्से में राजनीतिक वजूद बनाए रखने के लिए संघर्ष ही हाथ आया। इसके उलट विरोधी पक्ष के जो नेता पराजित हुए उनकी जरूर बल्ले-बल्ले हो गई। केंद्र में मंत्री पद, राज्यसभा सदस्य से लेकर प्रदेश मंत्रिमंडल में उन्हें जगह मिल गई।

भोपाल सीट पर पिछले 9 चुनावों से लगातार भाजपा का कमल खिल रहा है। दो दशक से यहां से किसी भी प्रत्याशी का टिकट रिपीट नहीं हो पाया। हालांकि पूर्व मुख्य सचिव सुशील चंद्र वर्मा लगातार 4 मर्तबा भोपाल सांसद रहे।

संजर को पुनर्वास का इंतजार

भोपाल जिला भाजपा अध्यक्ष रहने के बाद कार्यालय मंत्री रहे आलोक संजर को पार्टी ने 2014 में लोकसभा के चुनाव मैदान में उतार दिया। वह भारी मतों से जीते भी लेकिन आगे सियासी तौर पर और कोई उपलब्धि उनके हाथ नहीं आ पाई। पांच साल की सांसदी के बाद दूसरी बार टिकट भी कट गया। अब 5 साल से अपने पुनर्वास के इंतजार में है।

उमा का स्थायित्व भी टूटा

भाजपा हाईकमान ने 1999 में पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को दूरगामी योजना के तहत भोपाल सीट से लोकसभा में भेजा। केंद्र में वह मंत्री भी बनीं, बाद में उन्हें विस चुनाव की कमान सौंपी गई और दिसंबर 2003 में वह प्रदेश की पहली महिला सीएम भी बनीं लेकिन बाद में फिर सियासी स्थायित्व नहीं रह पाया।

नहीं मिली राज्यपाल की कुर्सी

पूर्व सीएम उमा के बाद पूर्व सीएम कैलाश जोशी 2004 और 2009 के चुनाव में भोपाल से जीतकर संसद में पहुंचे। दूसरे कार्यकाल के बाद पार्टी हाईकमान ने जोशी को किसी राज्य में राज्यपाल बनाने का प्रस्ताव आगे बढ़ाया लेकिन मामला आगे नहीं चढ़ पाया। हालांकि जोशी इस पद को लेकर काफी आशान्वित भी रहे।

3.64 लाख वोट से जीतने वालीं साध्वी का भी कट गया टिकट

2019 का चुनाव कई मायने में चर्चित रहा। भाजपा ने कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के मुकाबले संघ की पसंद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को मैदान में उतारा। मोदी लहर के चलते उन्होंने करीब पौने चार लाख के भारी अंतर से जीत दर्ज की। कार्यकाल के दौरान वह अपने विवादित बयानों के चलते संघ और सत्ता-संगठन के दिग्गजों का भी भरोसा नहीं जीत पाईं। मौजूदा चुनाव में उनका भी पत्ता कट गया।

पचौरी, पीसी को मिली थी बड़ी कुर्सी, दिग्विजय राज्यसभा गए

भोपाल सीट से हारने वाले नेताओं की फेहरिश्त देखें तो ज्यादातर को बड़ी कुर्सी नसीब हुई। इनमें 1999 में उमा भारती से हारने के बाद 2004 में सुरेश पचौरी की केंद्र में मंत्री बने थे। 2019 में दिग्विजय सिंह लोकसभा चुनाव हारे और 2022 में संसद के उच्च सदन राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए। संजर के खिलाफ 2014 में चुनाव हारने के बाद कांग्रेस के पीसी शर्मा की 2018 में कमलनाथ सरकार में मंत्री पद पर ताजपोशी हुई।

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