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भोपाल गैस त्रासदी अवमानना मामला : दोषी अधिकारियों ने लगाया पुनर्विचार आवेदन, हाईकोर्ट ने फैसले पर लगाई रोक, अब 19 फरवरी को होगी सुनवाई

जबलपुर। बुधवार को भोपाल गैस त्रासदी अवमानना मामले में सुनवाई हुई। इलाज में लापरवाही पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सजा पर फैसला रोक लगा दी है। दोषी अधिकारियों ने पुनर्विचार आवेदन लगाया था। जिसके बाद अदालत में बहस हुई और कोर्ट ने आज कोई फैसला नहीं लिया। कोर्ट अब दोषी अधिकारियों की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला लेगा। अगली सुनवाई 19 फरवरी को होगी।जस्टिस शील नागू और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच के समक्ष मामले की आज सुनवाई हुई। मामले में कोर्ट मित्र नमन नागरथ के अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल खरे और केसी घिल्डियाल सहित अन्य ने तर्क रखे।

अवमानना ​​के आरोप में घिरे थे अधिकारी

बता दें कि एसीएस मोहम्मद सुलेमान, पूर्व मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के दो अधिकारियों सहित 9 अधिकारियों को अदालत ने पिछली सुनवाई में अवमानना का दोषी माना था। अधिकारियों ने अपने ऊपर लगे अवमानना ​​के आरोप से बरी करने के लिए हाईकोर्ट में आवेदन किया है।

इन अधिकारियों को मिल चुका है नोटिस

  • भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण
  • रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के सचिव आरती आहूजा
  • भोपाल मेमोरियल अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर डॉ. प्रभा देसिकान
  • नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर रिसर्च ऑन एनवायर्नमेंटल हेल्थ के संचालक डॉ. आरआर तिवारी
  • तत्कालीन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस
  • अतिरिक्त मुख्य सचिव मोहम्मद सुलेमान
  • राज्य सूचना अधिकारी अमरकुमार सिन्हा
  • एनआईसीएसआई विनोदकुमार विश्वकर्मा
  • आईसीएमआर भारत सरकार के सीनियर डिप्टी संचालक आर. रामा कृष्णन

क्या है मामला ?

साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन और अन्य की याचिका पर सुनवाई की थी। गैस पीड़ितों के इलाज और पुनर्वास को लेकर 20 निर्देश दिए गए। इनका क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए निगरानी समिति गठित करने का आदेश दिया गया। इस कमेटी को हर 3 महीने में अपनी रिपोर्ट हाई कोर्ट के सामने पेश करने को कहा गया था। साथ ही रिपोर्ट के आधार पर केंद्र और राज्य सरकार को जरूरी दिशा-निर्देश भी देने थे। मॉनिटरिंग कमेटी की अनुशंसा पर काम नहीं करने का आरोप लगाते हुए अवमानना ​​याचिका दायर की गई थी। सरकारी अधिकारियों पर कोर्ट के आदेशों की अवहेलना का आरोप है।

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