Garima Vishwakarma
14 Nov 2025
धर्म डेस्क। मध्य भारत और अन्य क्षेत्रों में आज से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है। इस वर्ष भाद्रपद पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण का संयोग भी बन रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, यह दिन पितरों की कृपा पाने और उनके लिए तर्पण, पिंडदान एवं श्राद्ध करने के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।
पूर्णिमा तिथि की शुरुआत: 6 सितंबर, मध्यरात्रि 1:42 बजे
पूर्णिमा तिथि का समापन: 7 सितंबर, रात 11:39 बजे
स्नान-दान का शुभ मुहूर्त: सुबह 4:31 बजे से 5:16 बजे तक
चंद्र ग्रहण का समय: रात 9:58 बजे से 8 सितंबर, 1:26 बजे तक
भाद्रपद पूर्णिमा पर स्नान, दान और व्रत करने से विशेष पुण्य फल प्राप्त होता है। इस दिन पितरों के प्रति श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करने के लिए घर और मंदिर में विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।
पूर्णिमा श्राद्ध, जिसे पार्वण श्राद्ध या प्रोष्ठपदी पूर्णिमा भी कहते हैं, उन पूर्वजों के लिए किया जाता है जिनका देहांत पूर्णिमा तिथि को हुआ हो। इस दिन किए गए तर्पण और दान से पितृदोष शांति होती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।

आरंभ: भाद्रपद पूर्णिमा से
समापन: आश्विन अमावस्या (महालया)
अवधि: लगभग 15 दिन
पितृपक्ष में जल तर्पण दक्षिण दिशा की ओर करना चाहिए। हाथ में कुशा लेकर काला तिल डालना अनिवार्य है। जिस दिन किसी पूर्वज की मृत्यु हुई हो, उस दिन विशेष रूप से अन्न और वस्त्र का दान करना चाहिए।
इस वर्ष की भाद्रपद पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण भी पड़ रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण के समय सूतक काल रहता है, जिसमें कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। इसलिए पूर्णिमा का श्राद्ध और तर्पण सूतक काल से पहले करना उत्तम माना गया है।

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