ताजा खबरभोपालमध्य प्रदेशराष्ट्रीय

रामानंद सागर ने अरुण गोविल को ही क्यों बनाया ‘रामायण’ में राम ? पढ़िए प्रेम सागर का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

अरुण गोविल मेरठ से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, इसके चलते रामानंद सागर की ‘रामायण’ फिर से चर्चा में हैं

भोपाल (अमिताभ बुधौलिया)। ‘रामायण’ सीरियल के ‘राम’ यानी अरुण गोविल फिर से चर्चा में हैं। वे मेरठ(यूपी) से भाजपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। ‘रामायण’ का प्रसारण मूल रूप से 1987-88 में दूरदर्शन पर हुआ था। इसके बाद कोरोना लॉकडाउन में भी यह खूब देखा गया। निर्माता रामानंद सागर को अरुण गोविल में राम की छवि क्यों नजर आई और रामायण पर सीरियल बनाने का विचार कब-कहां और कैसे जन्म़ा…यह जानना वाकई दिलचस्प है। रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर ने बताया कैसे चुने गए रामायण सीरियल के ‘राम’ के लिए अरुण गोविल। पढ़िए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

सवाल-रामायण सीरियल का विचार कैसे आया ?

प्रेम सागर-1975-76 में हम स्विट्ज़रलैंड में ‘चरस’ फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। वहां एल्पस(alps-Mountain range in Europe) के ऊपर एक छोटा-सा गांव था डबला क्लेयर(Dabla Claire Village film charas shooting)। उधर हम शाम को थके हुए चाय पीने गए, तो एक फ्रेंचमैन बड़ा-सा डब्बा लेकर आया। डब्बा खोला और जैसे ही बटन दबाया, तो उसमें से फिल्म चलना शुरू हो गई। हम लोगों के तो जैसे होश ही उड़ गए कि डब्बे में फिल्म कैसे चल सकती है? हम उसके पीछे गए…प्रोजेक्टर ढूंढ़ने लगे। फिर हमने फ्रेंचमैन को बुलाया। तब उसने बताया कि यह कलर टीवी है।

सोचो कि पहली बार आप कलर टीवी देंखे, तो क्या होगा? उसी टाइम पापाजी(रामानंद सागर) ने संकल्प ले लिया था कि ‘मैं रामायण, कृष्ण, दुर्गा बनाऊंगा…फिल्में-विल्में छोड़ दूंगा।’

सवाल-रामायण की शुरुआत में क्या दिक्कतें आईं ?

प्रेम सागर-पापाजी तो बहुत बड़े फिल्मेकर थे। मूवी मुगल थे। घूंघट, जिंदगी, आरजू, आंखें, ललकार, चरस…बहुत सुपरहिट फिल्में दी थीं, तो उनका बहुत बड़ा नाम था। दुनियाभर में सब डिस्ट्रीब्यूटर्स के साथ इनकी दोस्ती थी। हिंदूजा, गिलानी…सबके साथ पक्की दोस्ती थी। पापाजी ने मदद के लिए इनको फोन किया-चिट्ठियां दीं और कहा कि मेरा बेटा आ रहा है। मैं सब जगह गया। लंदन, न्यूयॉर्क, लॉस एंजिलिस, हांगकांग, जापान-टोक्यो, सिंगापुर, लेकिन एक शख्स नहीं मिला, जिसने कहा हो कि ‘मैं रामायण को बैक(प्रोड्यूज) करूंगा।

सबने कहा कि पापा जी सटक गए हैं। 60 साल के गए हैं। सागर्स को क्या हो गया है? इतनी बड़ी मूवी मुगल की कंपनी है, एक बड़े पर्दे से छोटे पर्दे पर कैसे जा सकती है? पापाजी ने जब वो टीवी देखा था, तो उन्होंने पूछा था कि इसे देखने के कितने पैसे लगते हैं, तो सेल्समैन ने कहा ये मुफ्त है। आप देखना चाहे तो देखो, नहीं देखना हो तो बंद कर दो। जब पापाजी ने यह सुना, तो उन्होंने कहा कि ये ये तो फ्यूचर का मीडियम है। उस समय हिंदुस्तान में टीवी नहीं आया था।

सवाल-विक्रम और बेताल का रामायण से क्या कनेक्शन है ?

प्रेम सागर-पापाजी ने संकल्प लिया कि जीवन लीला समाप्त होने से पहले मुझे 12 सम्पूर्ण कला अवतार राम, 16 संपूर्ण कला कृष्णा और आदिशक्ति मां दुर्गा…ये तीन सीरियल मुझे कंप्लीट करने हैं। रामायण का स्टार्ट तो कर दिया, पर कोई सहयोग देने को तैयार नहीं…कोई एक पैसा लगाने को तैयार नहीं…कोई डिस्ट्रीब्यूटर नहीं। परेशानी की बात थी कि इसके लिए धन चाहिए, इंफ्रास्ट्रक्चर चाहिए…डिस्ट्रिब्यूटर चाहिए…रामायण बनाएंगे कैसे ?

फिर पापाजी और हम बैठे। मैंने कहा कि टेस्ट मार्केटिंग करते हैं। हम एक ऐसा सिमिलर प्रोडक्ट बनाते हैं, जो रामायण जैसा हो। क्योंकि सब लोगों का जो कहना था कि राम पर ये मुकुट और मूंछ नहीं चलेंगे। क्योंकि रामायण में माइथोलॉजी(पौराणिक) के कारण ये नहीं जंचेंगे, आप कुछ और बनाओ…हम तैयार हैं आपके साथ। लेकिन इसमें हम सहयोग नहीं देंगे। तो हमने ‘विक्रम और बेताल’ बनाया। इसमें राजा के मुकुट-मूंछ दोनों थीं। वो सुपरहिट हो गया। उसकी पूरी स्टार कास्ट रामायण में फिट थी। क्योंकि ‘विक्रम और बेताल’ की जो स्टार कास्ट थी, उसे रामायण के हिसाब से ही सिलेक्ट किया गया था।

जब आप ‘विक्रम और बेताल’ देखेंगे, तो वही विक्रम(अरुण गोविल) रामायण में राम बना, वही योगी रावण बना, वही राजकुमार लक्ष्मण बना, वही राजकुमारी सीता बनीं और वही वीरवर यानी दारासिंह रामायण में हनुमान बने। यह हमने प्रयास किया था कि अरुण गोविल अगर राम बनेंगे, तो मुकुट और मूंछ में कैसे लगेंगे, माइथोलॉजिकल ड्रेस में कैसे दिखेंगे ?

यह तो एक क्राइटेरिया था। दूसरा, अरुण का जो बदन है…अगर कंधे और नाभि को देखा जाए, तो ऐसा शरीर मिलना मुश्किल है। जो सेंसिटिव डायरेक्टर और सेंसिटिव कैमरामैन होते हैं, वो शरीर को भी पार्ट ऑफ फिल्म मेकिंग देखते हैं। जैसे-आंखें(1968) में हमने धर्मेंद्र का हाथ देखा था। इतना बड़ा हाथ कि लगा जब ये बंदूक पकड़ेगा, तो बहुत अच्छा लगेगा।

अरुण गोविल की दो कंधों के बीच में, नाभि के बीच में जो तीन लाइनें नोट करें, तो Exactly ये equal to actual है। ऐसा शरीर मिलना बहुत मुश्किल है। मैं अरुण से कहा कि राम के लिए तू ही फिट है।

सवाल-रामानंद सागर ने रामायण से इतिहास रचा, आप क्या सोचते हैं ?

प्रेम सागर-राम भगवान की बड़ी कृपा रही। पापाजी हमेशा कहते थे कि मैं तो सिर्फ एक माध्यम हूं। पापाजी जब पैदा हुए, तो उनका नाम चंद्रमौली रखा गया था। चंद्र मौली शंकर भगवान का नाम है, जिन्होंने सबसे पहले रामायण की रचना पार्वती को सुनाई। जब पापा का ‘नाम संस्करण’ हुआ था, तब इनका नाम रामानंद रख दिया गया था। उस समय ये कहां पता था कि कि ये जो शिशु है, आगे जाकर रामायण बनाएगा? जब पहली बार पापाजी मुंबई आए, तब उन्होंने कहा-मैं तो कुबेर की नगरी मैं आ गया हूं।

जब मुंबई में पापाजी ने समुद्र देवता को नमस्कार किया, तो समुद्र देवता अपनी एक लहर उनके चरणों में ले आए। उनको लगा कि समुद्र देवता मतलब वरुण देवता ने उन्हें स्वीकार कर लिया है। तब पापाजी ने अपना नाम राम आनंद सागर कर दिया। जब लीला यानी मेरी मां के साथ विवाह हुआ, तो रामलीला(रामायण का निर्माण) हो गया। अगर आप यह सब बिंदु जोड़ेंगे, तो यह कोई संयोग नहीं है। जैसे वाल्मीकीजी को भेजा गया था 24000 श्लोक में रामायण लिखने के लिए…तुलसीदास जी पैदा हुए रामचरित्र मानस अवधी में लिखने के लिए…तो रामानंद सागर को भेजा गया धरती पे electronic era में लिखने के लिए, क्योंकि इतना बड़ा हिट कोई मनुष्य तो नहीं कर सकता है।

33 साल बाद भी रामायण ने कोविड के दौरान टीवी पर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाना…यह कोई ह्यूमन हिट नहीं हो सकता। यह कोई दिव्य हिट होगा…यह ऊपर वाले द्वारा लिखित है कि वही इसके लिए किसी को भेजेगा। पापा अपना काम करके चले गए।

संबंधित खबरें...

Back to top button