Priyanshi Soni
16 Oct 2025
Aakash Waghmare
16 Oct 2025
Priyanshi Soni
16 Oct 2025
नई दिल्ली। चिंताग्रस्त लोगों में याददाश्त जाने (डिमेंशिया) का जोखिम, चिंतामुक्त लोगों की तुलना में तीन गुना अधिक हो सकता है। ‘जर्नल ऑफ द अमेरिकन जेरिएट्रिक्स सोसायटी’ में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, 60-70 वर्ष के आयु समूह के जिन लोगों में ‘क्रोनिक’ (लगातार) चिंता की समस्या होती है, उनमें मानसिक विकार विकसित होने की आशंका अधिक होती है, जिसमें याददाश्त व निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है, जिससे दैनिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं। ब्रिटेन के न्यूकैसल विवि के शोधकर्ताओं समेत अन्य शोधकर्ताओं ने कहा कि जिन लोगों की चिंता दूर हो गई, उनमें याददाश्त जाने का जोखिम उनकी तुलना में अधिक नहीं था, जिनमें यह समस्या कभी नहीं आई।
न्यूकैसल विवि से जुड़े और अध्ययन के सह-लेखक के. खांग ने कहा, ‘निष्कर्ष बताते हैं कि स्मृतिलोप की रोकथाम में चिंता एक नया जोखिम कारक हो सकती है। यह संकेत देता है कि चिंता के उपचार से यह जोखिम कम हो सकता है।’ शोधकर्ताओं के अनुसार, चिंता व स्मृतिलोप के बीच संबंधों की जांच करने वाले पिछले अध्ययनों ने शुरूआत में चिंता को मापा है। उन्होंने कहा कि अध्ययनों ने ध्यान दिया है कि लगातार चिंता व चिंता विकसित होने की उम्र, कैसे स्मृतिलोप के जोखिम को प्रभावित करती है।