
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट गर्भपात की वैधानिकता के मामले में 1973 के अपने उस फैसले को पलट सकता है, जिसमें गर्भपात को वैध ठहराया गया था। यानी इस फैसले के बाद अमेरिका में गर्भपात कराना गैर-कानूनी हो जाएगा। इसके खिलाफ अमेरिका में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। 1973 के फैसले को रो. वर्सेज वेड नाम से जाना जाता है। वहीं दुनिया के अन्य कई देश गर्भपात को कानूनी रूप देने की दिशा में काम करते नजर आ रहे हैं।
लीक हुआ सुप्रीम कोर्ट का फैसला
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के फैसला सुनाने से पहले ये लीक हो गया है। बता दें कि, ऐसा पहली बार हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार वहां की सर्वोच्च अदालत 1973 के एक ऐतिहासिक फैसले को पलट सकती है। यह अभी स्पष्ट नहीं है कि अमेरिका के बाहर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।
गर्भपात की वैधानिकता पर लंबे समय से विवाद
अमेरिका में गर्भपात की वैधानिकता को लेकर काफी समय से विवाद छिड़ा हुआ है। रिपब्लिकन पार्टी और उसके समर्थक कंजरवेटिव समूहों ने 1973 का फैसला पलटे जाने के पक्ष में मुहिम चला रखी है। रिपब्लिकन पार्टी शासित कई राज्यों में इस संबंध में कानून भी पारित कराए गए हैं।
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट अगर रो बनाम वेड फैसले को पलटता है, तो भी सभी राज्यों में गर्भपात एकदम से गैरकानूनी नहीं होगा। राज्य तय करेंगे कि वे इसे कानूनी बनाते हैं या नहीं।
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क्या है रो बनाम वेड फैसला?
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की ही बेंच ने 1973 में 7-2 के बहुमत से एक फैसला पारित किया था। ये ऐतिहासिक फैसला नॉर्मा मैककॉर्वी नाम की एक महिला की याचिका पर आया था। अदालती कार्यवाही में उनको ही ‘जेन रो’ नाम दिया गया है।
मैककॉर्वी ने फेडरल कोर्ट में याचिका दाखिल कर दावा किया कि टेक्सस का गर्भपात कानूनी असंवैधानिक है। जिसके बाद फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गर्भपात कराना है या नहीं, ये तय करना महिला का अधिकार है। साथ ही अमेरिकी संविधान के 14वें संशोधन की भावना के अनुरूप इसे ‘निजता के अधिकार’ (Right to Privacy) से संबद्ध माना था।
16 देशों में गर्भपात पर रोक
अगर जो बनाम वेड का फैसला पलटता है तो अमेरिका उन गिने-चुने देशों में शामिल हो जाएगा जिन्होंने हाल के समय में अबॉर्शन लॉ को बहुत सख्त किया है। 1994 के बाद से पोलैंड, अल सल्वाडोर और निकारागुआ ने ही गर्भपात कानूनों को सख्त किया है। मिस्र, इराक, फिलिपींस, लाओस, सेनेगल, निकारगुआ, अल सल्वाडोर, होंडुरास, हैती और डोमिनिकन रिपब्लिक समेत दुनिया में 16 देशों ने गर्भपात वर्जित है। वहीं यूएई समेत 39 देश ऐसे हैं जहां मां की जान बचाने के लिए गर्भपात की इजाजत है।
कहां गर्भपात मान्य है?
ब्रिटेन, जापान, फिनलैंड समेत 14 देश ही महिलाओं को यह तय करने का अधिकार देते हैं कि वह बच्चे को जन्म देना चाहती है या नहीं।
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गर्भपात को लेकर भारत में क्या है कानून की स्थिति?
भारत में गर्भपात को लेकर बहुत ही प्रोग्रेसिव कानून रहा है। भारत में 51 साल से अलग-अलग परिस्थितियों में महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात का कानूनी अधिकार मिला हुआ है। महिलाओं के मेडिकल गर्भपात के लिए गर्भ की समय सीमा को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह (पांच महीने से बढ़ाकर छह महीने) कर दिया गया।
दुष्कर्म पीड़ित, कौटुंबिक व्यभिचार की शिकार या नाबालिग 24 हफ्ते तक गर्भपात की इजाजत है। इसके अलावा वे महिलाएं जिनकी वैवाहित स्थिति गर्भावस्था के दौरान बदल गई हो (विधवा हो गई हो या तलाक हो गया हो) और दिव्यांग महिलाओं को भी 24 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी में अबॉर्शन का अधिकार है। अगर भ्रूण में कोई ऐसी विकृति या गंभीर बीमारी हो, महिला की जान का खतरा हो, तो भी 24 हफ्ते में गर्भपात का अधिकार है।