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नई दिल्ली। पचास वर्ष पहले कुआलालम्पुर में हॉकी विश्व कप फाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ विजयी गोल करने वाले अशोक कुमार ने कहा कि उस गोल के बाद ही वह अपने पिता महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद से नजरें मिला सके। आठ बार के ओलिंपिक चैम्पियन भारत ने अब तक एकमात्र विश्व कप 15 मार्च 1975 को कुआलालम्पुर में जीता था।
अशोक कुमार ने यहां विश्व कप की उस जीत पर ‘मार्च टू ग्लोरी’ किताब के विमोचन से इतर दिए इंटरव्यू में कहा उस पदक से पहले पिताजी और उनके भाई महान खिलाड़ी रूपसिंह जी के सामने नजरें मिलाने की मेरी कभी हिम्मत ही नहीं थी। उनके सामने मुझे भी फख्र से बताना था कि मैं भी कुछ जीत कर आया हूं। मेजर ध्यानचंद ने तीन जबकि रूप सिंह ने दो ओलिंपिक स्वर्ण जीते थे। उन्होंने कहा मुझे आज भी याद है कि जब मैं स्वर्ण पदक जीतकर आया तो मेरी मां और पिताजी दरवाजे पर खड़े थे। मैंने उन्हें पदक दिखाया तो मेरे पिता ने मेरी पीठ पर तीन चार बार थपथपाया मैं आज भी वह स्पर्श महसूस करता हूं।
अशोक कुमार ने आगे कहा उसके बाद पिछले साल हॉकी इंडिया ने उनके नाम पर मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार मुझे दिया तो मुझे लगा कि शायद जीवन में कुछ सही किया होगा। फाइनल मैच में अपना विजयी गोल उन्हें आज भी याद है और मैच से पहले खुद से किया गया वादा भी। उन्होंने कहा विजयी गोल उसी तरीके का था चूंकि पाकिस्तान के दो खिलाड़ियों को सर्कल पर से चकमा नहीं देता और वहीं से शॉट लेता तो गेंद भीतर जाती ही नहीं मैं गोल के करीब आया और छोटी सी जगह से दाहिनी ओर वी जे फिलिप को पास दिया और उन्होंने थोड़ा आगे जाकर पेनल्टी स्ट्रोक प्वाइंट पर मुझे ग्राउंड बॉल दिया जिस पर सटीक समय पर पूरी ताकत से मैने फ्लिक किया। अशोक कुमार ने कहा उस शॉट में इतनी ताकत थी कि गोल पोस्ट के त्रिकोण बोर्ड पर लगने के बाद कैरम के स्ट्राइकर की तरह घूमती हुई गेंद वापिस आई। यह मेरे लिये बहुत अहम गोल और पल था। हमारे पास सब कुछ था लेकिन विश्व कप गोल्ड नहीं था।
भारत के महान डिफेंडर और हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलीप टिर्की ने कहा कि पिछले सौ साल में भारतीय हॉकी के गौरवशाली इतिहास पर लिखा जाना चाहिये ताकि मौजूदा पीढ़ी को इसके बारे में पता चले। भारत के लिए 400 से अधिक अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुके टिर्की ने 1975 विश्व कप जीत की स्वर्ण जयंती पर आई किताब ‘मार्च टू ग्लोरी’ के विमोचन के मौके पर कहा ,भारतीय हॉकी का यह सौवां साल है और इसके गौरवशाली इतिहास की कहानियां नयी पीढ़ी के सामने आनी चाहिए। आठ बार की ओलंपिक चैम्पियन भारतीय टीम ने 15 मार्च 1975 को कुआलालम्पुर में एकमात्र विश्व कप जीता था । इस जीत पर हॉकी इतिहासकार के अरूमुघम और पत्रकार एरोल्ड डि क्रूज ने यह किताब लिखी है जिसमें ढाई सौ के करीब दुर्लभ तस्वीरें भी हैं ।