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बेबुनियाद आरोप प्रतिष्ठा को कलंकित करते हैं, इन्हें कानूनी राहत से भी बहाल नहीं किया जा सकता : बॉम्बे हाईकोर्ट

मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने आपराधिक आरोपों के मामले में एक महिला को राहत देते हुए कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि बेबुनियाद आपराधिक आरोप किसी भी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को कलंकित करते हैं और बदनामी का कारण बनते हैं। इससे हुए नुकसान को कानूनी राहत देकर भी बहाल नहीं किया जा सकता है।

मामला एक महिला न्यायिक अधिकारी से जुड़ा है। अधिकारी पर उसकी भाभी ने एफआईआर दर्ज कराई थी। जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई और जस्टिस आरएम जोशी की बेंच ने इस एफआईआर को रद्दे करते हुए टिप्पणी में कहा कि चरित्र हानि या प्रतिष्ठा को हुआ नुकसान कानूनी राहत देकर भी बहाल नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि किसी व्यक्ति की गरिमा और प्रतिष्ठा के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 और 19 (2) का एक एकीकृत हिस्सा जाता है।

शेक्सपीयर के हवाले से दिया उदाहरण

बेंच ने शेक्सपीयर का हवाला देते हुए कहा- किसी महिला या पुरुष द्वारा कमाई गई ख्याति उसका असल गहना है। जो मेरा बटुआ चुराता है, वह असल में कबाड़ चुराता है। हजारों लोग इसी ख्याल के अधीन रहते हैं कि कल मेरे पास कुछ था, आज कुछ नहीं, यह मेरा नसीब है और यह उसका। लेकिन जो मुझसे मेरा अच्छा नाम और ख्याति छीनता है, वह मुझसे मेरी वह चीज छीन लेता है, जिस से वह तो अमीर नहीं होता, लेकिन वास्तव में मुझे जरूर कंगाल कर देता है।

क्या है मामला

यह मामला 40 वर्षीय महिला न्यायिक अधिकारी से जुड़ा है। इसमें न्यायिक अधिकारी की 30 वर्षीय भाभी ने नवंबर 2013 में उनके खिलाफ मानसिक और शारीरिक यातना का आरोप लगाते हुए जलगांव थाने में मामला दर्ज कराया था। महिला अधिकारी के भाई और माता-पिता पर भी एक एफआईआर दर्ज कराई गई थी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता ( महिला न्यायिक अधिकारी) शादीशुदा है और शिकायकर्ता के साथ नहीं रहती है। उनकी भाभी ने उन्हें वैवाहिक विवाद में ‘घसीटते’ हुए आरोप लगाया कि उन्होंने सबके लिए खाना ऑर्डर किया था, लेकिन शिकायतकर्ता से खुद के लिए भोजन बनाने को कहा था। यही नहीं, अधिकारी ने अपनी भाभी से अपने माता-पिता के खिलाफ ऊंची आवाज में बात न करने और अपने तौर-तरीके बदलने को कहा था।

चरित्र हनन को कानूनी राहत से बहाल नहीं कर सकते

कोर्ट ने कहा- इस बात पर गौर फरमाना जरूरी है कि बेबुनियाद आपराधिक आरोप और लंबी आपराधिक कार्यवाही के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इस तरह की मुकदमेबाजी से व्यक्ति को अत्यधिक मानसिक आघात, अपमान और वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ता है। बेबुनियाद आरोप पेशेवर तरक्की और भविष्य की संभावनाओं पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं। कोर्ट ने कहा- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बेबुनियाद आरोप प्रतिष्ठा को कलंकित करते हैं, बदनामी का कारण बनते हैं और दोस्तों, परिजनों व सहकर्मियों के बीच व्यक्ति की छवि खराब करते हैं। इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि चरित्र हानि या प्रतिष्ठा को पहुंचे नुकसान को कानूनी राहत से भी बहाल नहीं किया जा सकता है।

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