ग्वालियर। भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठापूर्ण महोत्सव ‘तानसेन समारोह’ की सोमवार सुबह पारंपरिक ढंग से शुरुआत हुई। पूरब और पश्चिम की सांगीतिक प्रस्तुतियों का गुणीय रसिकों ने बुधवार सुबह आयोजित संगीत सभा में आनंद उठाया।
प्रेम, विरह व श्रृंगार से परिपूर्ण संगीत की भावनात्मक मिठास दिलों को जोड़ती है। संगीत सरहदों में नहीं बंधता। संगीत का संदेश भी शास्वत है और वह है प्रेम। तानसेन समारोह में भी भारतीय शास्त्रीय संगीत के मूर्धन्य साधकों और सुदूर अफ्रीकन देश जिम्बाबे से आए संगीत कला साधकों ने अपने गायन-वादन से यही संदेश दिया।

अफ्रीकन संगीत ने युवाओं में जोश भर दिया
दिसंबर महीने की सुबह की सर्द बेला में जिम्बाबे के ब्लेसिंग चिमंगा बैंड के कलाकारों ने जब अलावा मारींबा, सिंथेसाइजर, गिटार, सैक्सोफोन, ड्रम और मरीबा नामक वाद्य यंत्रों से शास्त्रीय संगीत से साम्य स्थापित कर मीठी-मीठी विशुद्ध अफ्रीकन धुनें निकालीं तो एक बारगी ऐसा लगा मानो गान महृषि तानसेन के आंगन में हो रहे संगीत के महाकुंभ में विश्व संगीत की आहुतियां हो रहीं हैं। इस बैंड ने अफ्रीका की सांस्कृतिक व मौलिक धुनों को जब ऊर्जावान होकर तेज रिदम के साथ प्रस्तुत किया तो युवा रसिक श्रोताओं में जोश भर गया। वहीं प्रकृति से जुड़े और निखरे अफ्रीकन संगीत ने गुणीय रसिकों को भीतर तक प्रभावित किया।
इस बैंड के मुख्य कलाकार चिमांगा हैं, जो अलावा मारींबा नामक अफ्रीकन वाद्य यंत्र बजाते हैं। तान समारोह में हुई इस बैंड की प्रस्तुति में सिंथेसाइजर व मबीरा पर अलीशा, गिटार पर जोलास बास और तुलानी कुवानी ने सैक्सोफोन पर संगत की। ड्रम व अन्य ताल वाद्यों पर ब्लेसिंग मापरुत्सा ने प्रोत्साहन दिया।

पं. चतुर्वेदी ने गायन से भरा गागर में सागर
तानसेन समारोह में मुंबई से आए पंडित सुखदेव चतुर्वेदी के राग माधुर्य ने सुधीय रसिकों को भीतर तक प्रभावित किया। उन्होंने अल्प समय में तीन अलग-अलग रागों में बंदिशें पेश कर गागर में सागर भर दिया। पंडित सुखदेव ने तानसेन के सुपुत्र विलासखान द्वारा सृजित राग “विलासखानी तोड़ी” में एक बंदिश पेश की। ताल चौताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे “चंद बदनी मृग नयनी हंस गमनी…”। दरभंगा सांगीतिक घराने की ध्रुपद गायकी में पारंगत पंडित सुखदेव चतुर्वेदी देश के शीर्ष शास्त्रीय गायकों में शुमार हैं। उन्होंने अपने गायन में कठिन लयकारियों व तिहाहियों को स्पष्ट उच्चारण के साथ प्रस्तुत कर यह साबित किया कि घरानेदार गायिकी कैसी होती है। पंडित चतुर्वेदी ने अपने गायन को विस्तार देकर राग” देसी” और धमार ताल में ” हूं तो तुम..” का गायन किया। उन्होंने राग “शुद्ध सारंग” और सूल ताल में “हर हर महादेव…” बंदिश गाकर अपने गायन को विराम दिया।
उनके गायन में सारंगी पर उस्ताद मुन्ने खां, पखावज पर पं मृणाल उपाध्याय ने मनमोहक संगत की। बुधवार की प्रातःकालीन सभा में दूसरे कलाकार के रूप में पं सुखदेव चतुर्वेदी की प्रस्तुति हुई।