धर्म

आज से चैत्र नवरात्रि शुरू: पहले दिन होती है माता शैलपुत्री की पूजा, जानें कलश स्थापना के नियम और शुभ मुहूर्त

चैत्र नवरात्रि आज से शुरू हो रही है। नवरात्रि के नौ दिन तक मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस दौरान घर में घटस्थापना या कलश स्थापना की जाती है। मां शैलपुत्री हिमालयराज की पुत्री हैं। शैल का अर्थ है पत्थर या पहाड़। मां शैलपुत्री की पूजा से व्यक्ति के जीवन में उनके नाम की तरह स्थिरता बनी रहती है।

घटस्थापना का मुहूर्त

इस बार नवरात्रि घटस्थापना का मुहूर्त 2 अप्रैल 2022,शनिवार को सुबह 06 बजकर 03 मिनट से 08 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। यदि इस मुहुर्त में कलश स्थापना नहीं कर पाते हैं तो अभिजित काल में 11:48 से 12:37 तक कलश स्थापना कर सकते हैं।

फोटो : सोशल मीडिया

नवरात्रि में कलश स्थापना के नियम

  • कलश की स्थापना करते समय जल में सिक्का डालें।
  • कलश पर नारियल रखें और कलश पर मिट्टी लगाकर जौ बोएं।
  • कलश के निकट अखंड दीपक जरूर प्रज्ज्वलित करें।
  • उत्तर और उत्तर-पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में कलश रखना चाहिए और माता की चौकी सजानी चाहिए।
  • कलश पर नारियल रखते समय ध्यान रखें कि नारियल का मुख नीचे की तरफ नहीं हो।
  • नारियल का मुख नीचे होने से शत्रुओं की वृद्धि होती है।
  • कलश पर नारियल रखते समय अगर नारियल का मुख पूर्व दिशा की ओर होता है तो धन की हानि के योग बनते रहते हैं।
  • कलश स्थापना का उद्देश्य तभी सफल होता है जब कलश पर रखा हुआ नारियल का मुख पूजन करने वाले व्यक्ति की ओर हो।

मां शैलपुत्री कथा

मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ (बैल) है। मां शैलपुत्री को राजा हिमालय की बेटी कहा जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार राजा दक्ष (सती के पिता) ने अपने घर पर एक बड़े यज्ञ का आयोजन करवाया। इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी देवताओं और ऋषि मुनियों को आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने भगवान शिव और सती को निमंत्रण नहीं भेजा। ऐसे में भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि बिना निमंत्रण यज्ञ में जाना ठीक नहीं। लेकिन सती नहीं मानी तो भगवान शिव ने उन्हें जाने की इजाजत दे दी।

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सती जब अपने पिता प्रजापित दक्ष के यहां पहुंची तो देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुंह फेरे हुए हैं और सिर्फ उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनें भी यज्ञ में उपहास उड़ाती रहीं और सति के पति भगवान शिव को भी तिरस्कृत कर रहीं थीं। इस तरह का कठोर व्यवहार और अपने पति का अपमान वे बर्दाश नहीं कर सकीं और क्रोधित हो गईं। इसी क्षोभ, ग्लानि और क्रोध में आकर उन्होंने खुद को यज्ञ में भस्म कर दिया।

जैसे ही ये समाचार भगवान शिव को मिला उन्होंने अपने गणों को दक्ष के पास भेजा और उनके यहां चल रहा यज्ञ ध्वस्त करा दिया। फिर अगले जन्म में उन्होंने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया, जिन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। और नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री मां की पूजा की जाती है।

(नोट: यहां दी गई सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हम मान्यता और जानकारी की पुष्टि नहीं करते हैं।)

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