
नई दिल्ली। फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के गोकुलपुरी इलाके में हुए दंगों के दौरान एक मेडिकल शॉप और एक दुकान में हुई लूटपाट और आगजनी के मामले में दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने 11 आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त और विश्वसनीय सबूत पेश नहीं किए जा सके और गवाहों की गवाही पर संदेह व्यक्त किया गया।
मेडिकल शॉप और दुकान जलाने का मामला
फरवरी 2020 के दंगों के दौरान गोकुलपुरी इलाके में क्राउन मेडिकोज नामक एक मेडिकल शॉप में आगजनी की गई थी। इस मामले में पीड़ित मोहम्मद इमरान शेख ने गोकुलपुरी थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने बताया कि 24 फरवरी 2020 को शाम 6 बजे वे अपनी दुकान बंद कर के घर चले गए थे। दुकान के पहले और दूसरे माले पर दवाइयों का स्टॉक भरा हुआ था। देर रात करीब 1:30 बजे पास के सैलून में काम करने वाले असलम ने उन्हें फोन कर बताया कि दंगाइयों ने पहले दुकान में लूटपाट की और फिर उसे आग के हवाले कर दिया।
एक और दुकान में भी आगजनी का मामला
इसी घटना में एक अन्य व्यक्ति अकरम अली की दुकान में भी आगजनी की गई थी। उसकी शिकायत को भी इस मामले में जोड़ दिया गया। इस प्रकार यह केस दो दुकानों में आगजनी और लूटपाट से जुड़ा हुआ था।
11 आरोपी बनाए गए
इस मामले की जांच के बाद पुलिस ने 11 आरोपियों को नामजद किया। इसमें अंकित चौधरी उर्फ फौजी, विजय अग्रवाल, सौरव कौशिक, भूपेंद्र पंडित, शक्ति सिंह, सचिन कुमार उर्फ रैंचो, योगेश शर्मा, सुमित उर्फ बादशाह, पप्पू, आशीष कुमार और राहुल के नाम शामिल हैं। जनवरी 2022 में कोर्ट ने इन सभी के खिलाफ आरोप तय किए थे। आरोप तय होने पर सभी ने खुद को बेकसूर बताया और मुकदमे की मांग की।
ट्रायल के दौरान एक आरोपी की मृत्यु
ट्रायल के दौरान, जनवरी में आरोपी आशीष कुमार की मृत्यु हो गई। बाकी आरोपियों के खिलाफ मुकदमा जारी रहा।
गवाहों की गवाही पर उठे सवाल
मुकदमे के दौरान जब ट्रायल शुरू हुआ तो आरोपी सौरव कौशिक की ओर से अधिवक्ता रक्षपाल सिंह और नितिन निचौड़िया और अन्य आरोपियों के वकीलों ने गवाहों के बयान में विरोधाभास की ओर अदालत का ध्यान दिलाया। विशेष रूप से घटनास्थल पर मौजूद दो पुलिसकर्मियों की गवाही पर सवाल उठे। उन्होंने दावा किया कि वे आरोपियों को पहले से जानते थे और उन्हें घटनास्थल पर देखा था। लेकिन उन्होंने आरोपियों की पहचान करने में 10 महीने की देरी की, जो संदेहास्पद माना गया।
अदालत ने कहा- संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए
कड़कड़डूमा कोर्ट के एडिशनल सेशन जज पुलस्त्य प्रमाचला ने कहा कि मामले में लगाए गए आरोप प्रमाणित नहीं हुए हैं। गवाहों की गवाही विरोधाभासी और संदेहास्पद रही, इसलिए आरोपियों को संदेह का लाभ मिलना चाहिए।
कोर्ट ने कहा, “अगर पुलिसकर्मी वास्तव में घटनास्थल पर मौजूद थे और आरोपियों को पहचानते थे, तो पहचान करने में 10 माह की देरी का कोई ठोस कारण नहीं दिया गया। यह गवाही संदेहास्पद है।”
सभी आरोपी बरी
सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने यह मानते हुए कि अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे सिद्ध नहीं कर सका, सभी 11 आरोपियों को बरी कर दिया।