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सड़क हादसे में घायलों को मिलेगा 1.5 लाख तक का मुफ्त इलाज, केंद्र ने शुरू की कैशलेस ट्रीटमेंट स्कीम

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने देशभर के सड़क हादसों में घायल होने वाले लोगों और उनके परिजनों को बड़ी राहत देते हुए एक नई योजना की घोषणा की है। इस योजना के तहत दुर्घटना में घायल व्यक्ति को 1.5 लाख रुपए तक कैशलेस इलाज की सुविधा मिलेगी। सड़क परिवहन मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, यह योजना देश की किसी भी सड़क पर होने वाले हादसे पर लागू होगी, चाहे वह राष्ट्रीय राजमार्ग हो या कोई अन्य सड़क।

कैशलेस इलाज की जिम्मेदारी निभाएगा NHAI

इस योजना के तहत इलाज के बाद भुगतान की जिम्मेदारी नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) को दी गई है। यानी, पीड़ित या उनके परिवार को इलाज के लिए 1.5 लाख रुपए तक की राशि खुद नहीं चुकानी पड़ेगी। योजना का उद्देश्य दुर्घटना के तुरंत बाद, विशेष रूप से गोल्डन ऑवर में, पीड़ित को तत्काल इलाज मुहैया कराना है।

अधिक खर्च पर वहन करना होगा अतिरिक्त बोझ

अगर इलाज की कुल लागत 1.5 लाख रुपए से अधिक होती है, तो अतिरिक्त राशि का भुगतान मरीज या उनके परिजन को करना होगा। साथ ही, यदि प्राथमिक उपचार के बाद मरीज को बड़े अस्पताल में रेफर किया जाता है, तो यह सुनिश्चित करना संबंधित अस्पताल की जिम्मेदारी होगी कि नए अस्पताल में मरीज को भर्ती किया जाए।

2 लाख तक सीमा बढ़ाने पर भी विचार

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, केंद्र सरकार इस योजना की अधिकतम सीमा को बढ़ाकर 2 लाख रुपए करने पर भी विचार कर रही है। इससे अधिक गंभीर घायलों को राहत मिलने की संभावना है, क्योंकि कुछ मामलों में इलाज का खर्च 5-10 लाख रुपए तक पहुंच जाता है।

गडकरी ने जताई थी चिंता

जनवरी 2025 में केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने देश में सड़क हादसों की बढ़ती संख्या पर चिंता जाहिर की थी और यह संकेत दिया था कि सरकार दुर्घटना पीड़ितों के लिए कैशलेस इलाज योजना शुरू करने की दिशा में काम कर रही है। अब यह योजना हकीकत बन गई है।

इस योजना को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) राज्य पुलिस, अस्पतालों और राज्य की स्वास्थ्य एजेंसियों के साथ मिलकर काम करेगा। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दुर्घटना के बाद किसी भी पीड़ित को इलाज के लिए समय बर्बाद न करना पड़े।

हर साल सरकार पर 10,000 करोड़ रुपए का बोझ

सड़क हादसे में घायल लोगों के इलाज में औसतन 50,000 रुपए से 2 लाख रुपए तक का खर्च आता है। सरकार को उम्मीद है कि इस योजना से हर साल लगभग 10,000 करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा, लेकिन यह राशि उन हजारों जानों की कीमत से कहीं कम है, जिन्हें समय पर इलाज देकर बचाया जा सकता है।

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