
वॉशिंगटन डीसी। अमेरिका की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी हार्वर्ड ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के खिलाफ मैसाचुसेट्स की फेडरल कोर्ट में याचिका दायर की है। यूनिवर्सिटी ने आरोप लगाया है कि, ट्रंप प्रशासन राजनीतिक दबाव डालकर शैक्षणिक गतिविधियों और नीतियों पर अनुचित नियंत्रण स्थापित करना चाहता है, जो संविधान के पहले संशोधन का उल्लंघन है।
फंडिंग रोकने की धमकी बनी विवाद की जड़
मामला तब शुरू हुआ जब ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की 2.2 बिलियन डॉलर (लगभग 18 हजार करोड़ रुपए) की फंडिंग पर रोक लगाने की धमकी दी। साथ ही, प्रशासन ने विश्वविद्यालय से यह भी कहा कि वह अक्टूबर 2023 के बाद कैंपस में हुई यहूदी विरोधी घटनाओं पर बनी सभी रिपोर्टें और उनसे जुड़े ड्राफ्ट सरकार को सौंपे। रिपोर्ट बनाने वाले प्रोफेसर्स और छात्रों की पहचान उजागर कर उन्हें संघीय एजेंसियों के इंटरव्यू के लिए भी उपलब्ध कराने की मांग की गई।
प्रोफेसर्स भी मैदान में उतरे
इससे पहले हार्वर्ड के प्रोफेसर्स के दो समूहों ने भी कोर्ट में मुकदमा दर्ज किया था। उनका कहना है कि, यूनिवर्सिटी फंड रोकने की धमकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सीधा उल्लंघन है। प्रोफेसर्स ने इसे शिक्षा जगत पर हमला बताते हुए कहा कि ट्रंप प्रशासन संविधान के तहत दी गई स्वतंत्रता को कुचलने की कोशिश कर रहा है।
फर्स्ट अमेंडमेंट क्या है?
अमेरिका के संविधान का पहला संशोधन (1791) नागरिकों को पाँच महत्वपूर्ण अधिकार देता है:
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- प्रेस की स्वतंत्रता
- धार्मिक स्वतंत्रता
- शांतिपूर्ण सभा का अधिकार
- सरकार के खिलाफ याचिका का अधिकार
अमेरिकी न्यायपालिका के अनुसार, शैक्षणिक स्वतंत्रता भी इसी संशोधन के अंतर्गत संरक्षित है।
हार्वर्ड पर यहूदी विरोध को नजरअंदाज करने का आरोप
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि हार्वर्ड जैसे प्रतिष्ठित संस्थान अपने कैंपस में यहूदी विरोधी गतिविधियों को रोकने में विफल रहे हैं। इस आरोप के चलते ही यूनिवर्सिटी की फंडिंग रोकने का फैसला लिया गया। प्रशासन ने यह भी आरोप लगाया कि कैंपस में फिलिस्तीनी झंडा लहराया गया और यह प्रदर्शन यूनिवर्सिटी की नीतियों के खिलाफ थे।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी भी निशाने पर
सिर्फ हार्वर्ड ही नहीं, ट्रंप प्रशासन ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी की भी 33 अरब रुपए (400 मिलियन डॉलर) की ग्रांट रोक दी है। यह कदम भी गाजा विवाद और यहूदी छात्रों पर हो रहे कथित भेदभाव को लेकर उठाया गया है।
हार्वर्ड प्रेसिडेंट का जवाब
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट एलन एम. गार्बर ने ट्रंप प्रशासन की आलोचना करते हुए कहा, “एक यहूदी और अमेरिकी के रूप में मैं जानता हूं कि यहूदी विरोध एक गंभीर मुद्दा है, लेकिन इस पर चर्चा संवैधानिक दायरे में होनी चाहिए, न कि राजनीतिक दबाव के जरिए।” उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि, वह यूनिवर्सिटी में किसे पढ़ाया जाए, किसे नियुक्त किया जाए और किसे दाखिला मिले- इन सब पर नियंत्रण चाहती है।
ट्रंप के तीखे आरोप
डोनाल्ड ट्रंप ने हार्वर्ड को “मूर्खों और नफरतियों की जगह” कहा और यूनिवर्सिटी को “वामपंथियों का गढ़” बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि हार्वर्ड की भर्ती प्रक्रिया में प्रतिभा की बजाय विचारधारा को प्राथमिकता दी जाती है। ट्रंप ने कहा कि यूनिवर्सिटी को वोक और रेडिकल लेफ्ट का मंच बनने से रोका जाना चाहिए।
हार्वर्ड को लेकर प्रशासन की मांगें
व्हाइट हाउस ने हार्वर्ड के सामने कुछ कड़े प्रस्ताव रखे हैं:
- विविधता और समावेशन कार्यक्रमों को बंद किया जाए
- प्रदर्शन के दौरान नकाब पहनने पर प्रतिबंध लगाया जाए
- मेरिट बेस्ड रिक्रूटमेंट और एडमिशन लागू किया जाए
- फैकल्टी और एडमिन की शक्ति कम की जाए
अगर हार्वर्ड ने इन शर्तों को नहीं माना, तो 1 बिलियन डॉलर का हेल्थ रिसर्च कॉन्ट्रैक्ट भी रोकने की धमकी दी गई है।
388 साल पुरानी विरासत पर संकट
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की स्थापना 1636 में हुई थी और यह अमेरिका का सबसे पुराना निजी विश्वविद्यालय है। शिक्षा, रिसर्च, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में हार्वर्ड का नाम दुनिया के शीर्ष संस्थानों में लिया जाता है। ऐसे में इस यूनिवर्सिटी पर सरकारी दबाव का यह मामला अमेरिकी शिक्षा जगत की स्वतंत्रता के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है।