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टैरिफ वॉर को लेकर अमेरिका-चीन में बढ़ी तनातनी, क्या इसका फायदा उठा पाएगा भारत!

ज्योतिर्मय सिंह गौर। ट्रंप प्रशासन के टैरिफ ने पूरी दुनिया के व्यापार में खलबली मचा दी है और भारत भी इसकी चपेट से नहीं बच पाया। पहले, अमेरिकी सरकार ने भारतीय सामानों पर एक झटके में 26% का अतिरिक्त आयात शुल्क लगा दिया, जो पहले के मामूली शुल्कों के मुकाबले काफी ज्यादा था। हालांकि, एक ताजा खबर यह है कि अमेरिका ने इस बढ़े हुए 26% शुल्क को फिलहाल 90 दिनों के लिए।

यानी 9 जुलाई तक टाल दिया है। इस थोड़ी सी राहत से भारतीय निर्यातकों ने चैन की सांस ली है, लेकिन 10% का आयात शुल्क अभी भी बना हुआ है। वहीं, चीन के प्रति अमेरिका का रवैये काफी नकारात्मक है। अमेरिका ने चीन पर 145% का भारी भरकम टैरिफ लाद दिया है, जवाब ने चीन ने भी अमेरिका पर 125% का जवाबी टैरिफ लगाया है। अमेरिका का चीन के प्रति व्यापारिक घाटा बहुत ज्यादा है। टैरिफ के पीछे ट्रंप की दलील है कि इससे अमेरिका का व्यापारिक घाटा कम होगा। इससे आयात निर्यात की बहुत सारी चीजें प्रभावित होंगी। ऐसे में क्या इसकी संभावना है कि भारत, अमेरिका का नया ट्रेंडिंग पार्टनर बनकर उभरे।

टैरिफ का भारतीय बाजार पर भी हुआ असर

इन शुल्कों की घोषणा होते ही भारतीय बाजारों में अफरा-तफरी मच गई। खासकर स्टील, एल्यूमीनियम और एग्रीकल्चर जैसे क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। यह लंबे समय से अपना माल अमेरिका को बेचते आए हैं। फार्मा और कपड़े के उद्योग को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा हैं, जिससे आर्थिक अनिश्चितता और बढ़ गई है। स्टील और एल्यूमीनियम जैसे उद्योगों को डर है कि बढ़ी हुई लागत के कारण वे अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछड़ जाएँगे। यह 90 दिनों की मोहलत थोड़ी राहत जरूर देती है।

क्या है आगे की राह

इन शुल्कों का आने वाले समय में क्या असर होगा, यह कह पाना फिलहाल मुश्किल है। भले ही थोड़े समय के लिए राहत मिल गई हो। एक बड़ा डर यह है कि अमेरिका और भारत का निर्यात कम हो जाएगा, जिससे हमारी आर्थिक तरक्की में ब्रेक लग सकता है।

ऐसे में, भारत सरकार के सामने यह चुनौती है कि वह दूसरे देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते मजबूत करे और अपने घरेलू उद्योगों को और बढ़ावा दे। भारत और अमेरिका के बीच चले आ रहे व्यापारिक संबंध इस मामले में बहुत महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। 90 दिनों का यह समय बातचीत के लिए एक सुनहरा अवसर है। भारत हमेशा से निष्पक्ष व्यापार का समर्थक रहा है और वह इन शुल्कों के बुरे प्रभावों को कम करने के तरीके खोज रहा है। साथ ही, यह भी साफ कर दिया है कि वह किसी भी दबाव में आकर गलत समझौता नहीं करेगा। दुनिया की मौजूदा आर्थिक स्थिति, खासकर अमेरिका और चीन के बीच चल रही व्यापारिक तनातनी भारत के लिए आने वाले समय को और भी अनिश्चित बना देती है।

हालांकि, बीते दिनों में कई बार ट्रंप ने मोदी को अपना अच्छा दोस्त करार दिया है और पीएम मोदी भी उन्हें अपना दोस्त बताते हैं। ऐसे में इसे कूटनीति में बदलने की जरूरत है, ताकि भारत इस टैरिफ वॉर का फायदा उठा सके और एक नई उभरती अर्थव्यवस्था बन सके।

 

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