
प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा स्थित कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले की अगली सुनवाई की तारीख 30 सितंबर तय की है। बुधवार को जब इस मामले में सुनवाई शुरू हुई तो अदालत को बताया गया कि वादी (हिंदू पक्ष) की ओर कुछ मुकदमों में संशोधन की अनुमति मांगी गई है। वहीं, कुछ वकीलों ने कहा कि उन्हें इन मामलों की आज सुनवाई होने के संबंध में पूर्व में सूचना नहीं मिल सकी थी।
मस्जिद पक्ष की अर्जी पर मांगा जवाब
जस्टिस मयंक कुमार जैन की अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही है। जस्टिस ने जैन ने एक अगस्त 2024 को हिंदू पक्ष के मुकदमों को चुनौती देने वाले मुस्लिम पक्ष के आवेदन खारिज कर दिए थे और कहा था कि हिंदू पक्ष के सभी मुकदमे पोषणीय (सुनवाई योग्य) हैं। इस मामले में कोर्ट ने मंदिर पक्ष से 30 सितंबर तक जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। कोर्ट ने मंदिर पक्ष से मस्जिद पक्ष की अर्जी पर जवाब मांगा था।
कोर्ट ने क्या कहा ?
कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि ये मुकदमे समय सीमा, वक्फ अधिनियम और पूजा स्थल अधिनियम 1991 से बाधित नहीं हैं। पूजा स्थल अधिनियम किसी भी धार्मिक ढांचे को जो 15 अगस्त 1947 को मौजूद था, उसे परिवर्तित करने से रोकता है।
हिंदू पक्ष ने दाखिल किए 18 मुकदमे
हिंदू पक्ष ने शाही ईदगाह मस्जिद का ढांचा हटाने के बाद जमीन का कब्जा लेने और मंदिर बहाल करने के लिए 18 मुकदमे दाखिल किए हैं। यह विवाद मथुरा में मुगल बादशाह औरंगजेब के समय की शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा है, जिसे कथित तौर पर भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद बनाया गया है।
हालांकि, मुस्लिम पक्ष (शाही ईदगाह की प्रबंधन समिति और उप्र सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड) ने इन मुकदमों का विभिन्न आधार पर विरोध किया है।
क्या है विवाद ?
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और शाही ईदगाह मस्जिद का यह पूरा विवाद 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक को लेकर है। इस जमीन के 11 एकड़ में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर है तो बाकी बचे 2.37 एकड़ में शाही ईदगाह मस्जिद बनी है। हिंदू पक्ष का दावा है कि पूरी जमीन श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर की है और पूरी जमीन उन्हें देने की मांग कर रहा है। वहीं मुस्लिम पक्ष इस दावे से इनकार कर रहा है।
वहीं, जानकार दावा करते हैं कि इस विवाद का इतिहास 350 साल पुराना है। साल 1670 में जब दिल्ली में मुगल शासक औरंगजेब का शासन था, उसी दौरान ठाकुर केशव देव मंदिर को तोड़कर उसके ऊपर शाही ईदगाह मस्जिद बनवाई गई थी। मस्जिद के निर्माण में मंदिर के ही अवशेषों का इस्तेमाल किया गया था। यही वजह है मस्जिद में सनातन धर्म के प्रतीक होने का दावा किया जा रहा है।