
प्रीति जैन। आम माता-पिता की तरह सेलेब्स भी अपने बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर परेशान रहते हैं। हाल में फिल्म प्रमोशन के दौरान करीना कपूर ने बताया कि उन्हें भी अपने दोनों बच्चों का स्क्रीन टाइम मैनेज करने में दिक्कत आती है, लेकिन वे इसका हल निकाल रही हैं। करीना ने कहा, जब हम उन्हें सुलाना चाहते हैं तो हम भी पढ़ते हैं और जब तक वो सो नहीं जाते, तब तक टीवी नहीं देखते।
मुझे लगता है कि बच्चे उदाहरण से सीखते हैं, अगर वो हमें फोन पर देखेंगे, तो वो भी ऐसा करना चाहेंगे। इसी महीने एक आयोजन में इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति ने बताया था कि जब उनके बच्चे छोटे थे तब उनका परिवार पूरी तरह से पढ़ने-पढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता था। शाम 6.30 बजे से 8.30 बजे तक टेलीविजन पर सख्त प्रतिबंध रहता था।
बच्चे पढ़ाई करें तब स्क्रीन टाइम जीरो करना जरूरी
बच्चों को टीवी या मोबाइल देखने से रोकने के लिए पैरेंट्स को अपना स्क्रीन टाइम लिमिट करना होगा। ऐसे भी मामले आए हैं, जिसमें माता या पिता का काम के बाद का सारा समय मोबाइल पर जाता है और बच्चे परेशान रहते हैं। बच्चों का स्क्रीन टाइम लिमिट करना है तो शाम के समय पढ़ाई के वक्त घर में किसी तरह का म्यूजिक, टीवी या मोबाइल टाइम पैरेंट्स को नहीं देखना चाहिए। डिनर के पहले बच्चों को टीवी देखने का समय दिया जा सकता है। – डॉ. शिखा रस्तोगी, मनोविशेषज्ञ
ऑफिस का काम कर रहे हैं तो बच्चों को बताएं
नारायण मूर्ति और करीना कपूर ने सही कहा है कि बच्चों के सामने मिसाल पेश करके ही उन्हें स्क्रीन टाइम कम रखने के लिए समझाया जा सकता है। पढ़ाई से ब्रेक मिलते ही वे मोबाइल की ओर भागते हैं। यह आदत बच्चों को बड़ों से ही लगती है। बच्चों को यह भी समझाना चाहिए कि वे ऑफिस का काम कर रहे हैं इसलिए वे स्क्रीन पर हैं। – सोनम छतवानी, साइकॉलोजिस्ट
मैं अपनी बेटी को पढ़ाई से पहले या बाद में जैसा वो चाहे खेलने भेजती हूं। पढ़ाई होने के बाद कुछ समय टैब पर बिताने को देती हूं, लेकिन उस वक्त मैं भी खुद को फ्री रखती हूं, ताकि साथ में बैठकर इंटरनेट से कुछ चीजें देखें। अक्सर वो ऐप से ड्रॉइंग देखती है और कुछ वीडियोज। कभी टैब उससे डांटकर नहीं लेना पड़ा क्योंकि वो देखती हैं कि मां खुद ज्यादा मोबाइल नहीं देखतीं। – श्वेता सिंह अभिभावक
मैंने बेटी के लिए पांच साल की उम्र से ही यह आइडिया निकाल लिया था कि उसे स्पोर्ट्स से कनेक्ट करूंगी और ऐसा हो भी पाया। वो मोबाइल की जगह खेलना- कूदना पसंद करती है। अब वो 8 साल की हो गई है तो हम साथ में एक घंटा बैठकर टीवी देखते हैं। पूरी फैमिली दिनभर टीवी या मोबाइल पर नहीं रहती तो उसको भी आदत नहीं लगी। – अनामिका खाकरे, अभिभावक
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