
दतिया। देश के दिल मध्य प्रदेश में दतिया पैलेस एक शानदार दोस्ती की मार्मिक कहानी सुनाने के लिए खड़ा है। दतिया का 400 साल पुराना 440 विशाल कमरों वाला महल मुगल सम्राट जहांगीर के स्वागत के लिए राजा बीर सिंह देव ने बनवाया था। यह सतखंडा महल इंडो-इस्लामिक स्थापत्य शैली या आर्किटेक्चर का प्रतीक है। इस महल की खासियत है कि इसके निर्माता बीर सिंह देव कभी यहां नहीं रहे। 400 सालों में इसे केवल एक रात रहने के लिए इस्तेमाल किया गया। आइए जानते हैं आखिर ये महल बना क्यों…
दतिया पैलेस की खासियत
- अपनी खाली स्थिति के बावजूद, 440 कमरों का यह महल भव्यता और रहस्य को दर्शाता है। स्थानीय लोग इसे भूतिया जगह भी कहते हैं क्योंकि इस पर कभी कोई कब्ज़ा भी नहीं हुआ।
- दतिया पैलेस, अपनी ऐतिहासिक समृद्धि, वास्तुकला की चमक और सांस्कृतिक महत्व के साथ, भारत की वास्तुकला की कहानी में एक आकर्षक अध्याय है, जो बीते युगों की भव्यता और कलात्मक बारीकियों की झलक दिखाता है।
- जब भारत की राजधानी को डिजाइन करने का काम 43 वर्षीय लुटियंस को सौंपा गया तो वे भारत को समझने के लिए यात्रा पर निकले। डिज़ाइन का उद्देश्य भारत में पश्चिमी कला, विज्ञान और संस्कृति की श्रेष्ठता को प्रदर्शित करना था।
- वे दतिया पैलेस के हिंदू और इस्लामी शैलियों के मिश्रण से इतने प्रभावित हुए कि इस मिश्रण ने नई दिल्ली के नार्थ और साउथ ब्लॉक के साथ-साथ भव्य राष्ट्रपति भवन के डिजाइन में भी अपनी जगह बना ली।
- दतिया पैलेस को केवल पत्थरों और ईटों के इस्तेमाल से बनाया गया है। सीमेंट की जगह उरद की दाल, गुड़ और तेल के प्राचीन मिश्रण का उपयोग किया गया है। बिना लोहे और सीमेंट के बना यह महल अपने भीतर एक मजबूत दोस्ती की कहानी छिपाए है।
क्या है पूरी कहानी
सलीम की हत्या की साजिश : जब, ये क्षेत्र मुगल साम्राज्य के आधीन था और सम्राट अकबर की अपने बड़े बेटे सलीम से खिट-पिट चल रही थी। एक समय ऐसा आया, जब सलीम ने अपने पिता के खिलाफ विद्रोह कर दिया। अकबर ने उन्हें मनाने के लिए अपने प्रधानमंत्री अबुल फजल को भेजा। कहा जाता है कि अबुल फजल, सलीम को राजगद्दी पर नहीं बिठाना चाहते थे और मौके का फायदा उठाकर सलीम की हत्या करना चाहते थे।
अबुल फजल का कटा सिर लाए बीर सिंह : सलीम को भी अबुल फजल के ईरादों की भनक लग गई थी। तभी सियासत में महज एक जमींदार बीर सिंह देव उनके पास अकबर के वजीर को मारने का प्रस्ताव लेकर पहुंच गए। ये भी कहा जाता है कि सलीम उनके पास खुद मदद मांगने पहुंचे थे। बीर सिंह देव ने अबुल फजल का कटा हुआ सिर सलीम के सामने पेश कर दिया, जिससे सलीम उनके एहसानमंद थे। वहीं अकबर इस कारनामे से बौखलाए हुए थे और किसी भी हालत में बीर सिंह देव को धर दबोचना चाहते थे।
सलीम का बीर सिंह को उपहार : सलीम, खास मित्र बन चुके बीर सिंह देव को राजमहल के खतरों से बचा रहे थे। बीर सिंह ने अपनी जिंदगी के कई साल अकबर के सिपाहियों के साथ लुकाछिपी खेलने में गुजारे। अकबर के बाद युवराज से राजा बने सलीम ने अपना नाम बदलकर जहांगीर रख लिया। बीर सिंह देव का एहसान चुकता करते हुए उन्हें ओरछा के सिंहासन पर बैठा दिया। इसके साथ ही अपने साम्राज्य में 52 इमारतों के निर्माण के लिए हरी झंडी दे दी। इसमें से एक जगह थी दतिया, जिसे उन्होंने बीर सिंह देव को उपहार के रूप में दिया था।
दोस्ती की निशानी बना किला : ओरछा जाने से पहले इसमें जहांगीर ने बस एक रात गुजारी थी। उपहार होने के कारण बीर सिंह जूदेव और उनका परिवार कभी दतिया महल में नहीं रहा। बल्कि वे इसके पास ही एक छोटे से महल में रहते थे जो अब खंडहर हो चुका है। ऐसे ही यह किला हमेशा के लिए दोनों की ताउम्र दोस्ती की निशानी बन गया।
कैसा है महल
- यह भी कहा जाता है कि महल उसी जगह बना है जहां जहांगीर और बीर सिंह के बीच गुप्त बैठक हुई थी। 7 मंजिला होने की वजह से इसे सतखंडा महल भी कहा जाता है जिसमें से 2 मंजिलें अंडरग्राउंड हैं और भूलभुलैयां हैं। भूलभुलैयां को सुरक्षा कारणों से बंद कर दिया गया है लेकिन बाकी महल भी किसी भूलभुलैंया से कम नहीं है।
- कहा जाता है कि, महल जितना ऊंचा है नीचे उतना ही गहरा है।
- पैलेस की पहली दो मंजिलों पर अंधेरा रहता है और तीसरी मंजिल पर बालकनी से पूरे शहर का नजारा दिखता है।
- सीलिंग पर मानव आकृतियां उभरी हुई हैं, जिसमें बुंदेली नर्तकियों को राई नृत्य करते दिखाया गया है।
- चौथी मंजिल का फर्श चौपाई खेल से मिलता-जुलता है। पांचवी मंजिल पर सिर्फ एक कमरा है।
- दतिया स्टेट गजेटियर में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जब महाराजा के सेवकों से पूछा गया कि गोविंद महल को क्यों छोड़ दिया गया तो जवाब मिला कि आज का कोई भी शासक ऐसे भव्य महल के लायक नहीं है और न ही कोई ऐसे महल में आराम से रह सकता है जो इतने महान राजा के लिए बनाया गया हो।
रुस्तमे हिंद और गामा पहलवान की ननिहाल है दतिया
गामा पहलवान का अखाड़ा बीर सिंह पैलेस में आज भी मौजूद है, यहां वे पहलवानी के दांवपेच सीखते थे और पत्थर के डंबल से बॉडी बनाते थे। दतिया के महाराजा भवानी सिंह ने उन्हें पहलवानी करने की सुविधाएं दी थी, जिससे उनकी पहलवानी में गजब का निखार आया। एक दिन में 5 हजार बैठक और हजार पुश्प्स लगाने वाले गामा 52 साल के करियर में अपराजेय रहे और उसमें इस किले की बड़ी भूमिका है।
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